Book Title: Ratnapala Nrup Charitra
Author(s): Surendra Muni
Publisher: Pukhraj Dhanraj Sheth

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Page 129
________________ 112 ] * रत्नपाल नृप चरित्र * .. वाला रसतुम्बक तुझे मिला और सदा उत्सव से युक्त निष्कटक राज्य भी मिला / इस प्रकार सर्वज्ञ मुनि के मुखारविन्द से अपने पूर्वजन्म के वृत्तान्त को अच्छी तरह श्रवण करने से . सप्रिय नृप रत्नपाल को जातिस्मरण ज्ञान हो गया। उस जातिस्मरण ज्ञान से सर्वज्ञ मुनि से कहे हुए अपने पूर्वभव के वृत्तान्त को साक्षात् देखकर अभंग वैराग्य को प्राप्त हुआ, मन में इस प्रकार विचारने लगा-दुःख ही है सार जिसमें ऐसे संसार में भटकते हुए तृष्णा से चंचल प्राणियों ने अनेक बार विषय सुख पहिले भी भोगे हैं। हा! यह खेद के साथ कहना पड़ता है तो भी मूर्ख लोग उन्हीं विषयों में आसक्त हुए परलोक में आत्म-कल्याण करने वाले आर्हत धर्म का आचरण नहीं करते। जैसे शरदकाल-बादल पवन से बिखर जाते हैं, उसी प्रकार इस संसार में दृश्य क्षणभंगुर हैं, ऐसा मैं मानता हूँ। लक्ष्मी समुद्र के तरंग की भांति चंचल है और प्रिय संगम मार्ग में रहे हुऐ वृक्ष के नीचे विश्राम लेने वाले मुसाफिरों के संगम जैसा है। और सब इन्द्रियों के विषय आपातमधुर तथा परिणाम में दुखदायी हैं। केले के मध्य भाग की तरह संसार में कुछ दिखाई नहीं पड़ता। क्षण में दीखने से और क्षण में ही नष्ट होने से संसार में सब स्वप्न तुल्य हैं। पहिला–अर्थात् स्वप्न सोये हुए को होता P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak'Trust

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