________________ 88] * रत्नपाल नृप चरित्र * निरन्तर आते जाते नहीं देखा। जो लोग अपनी बुद्धि से समुद्र के जल को पलों में माप लेते हैं, वे भी स्त्री के गहन चरित्र को अच्छी तरह से नहीं जान सकते। किसी विद्वान् ने कहा है: अश्व'लुतं माधव गर्जितं च स्त्रीणां चरित्रं भवितव्यतां च / र अवर्षणं चापि च वर्षणं च देवा न जानन्ति कुतो मनुष्याः // 1 // - अथाह समुद्र के पार को पा सकते हैं, परन्तु स्वभाव से कुटिल स्त्रियों के दुश्चरित्र का कोई पार नहीं पा सकता। और भी कहा है:--- विहि विलासि आण खल भापि प्राण तह कूट महिला चरित्राण . मन वंछिप्राण पारं जाणइ जइ होइ सम्वन्नू // छ अर्थात् विधि के विलास का, दुष्ट के भाषित का, कूट महिला के चरित्र का, मनोवांछितों का पार यदि सर्वज्ञ हो तो समझ सकता है / एक दिन उस सेठ के कुशल नामक नौकर ने उस बड़े काष्ठ को अन्योन्य स्थान में नित्य देखकर कौन इसको इतना चलाता है ? आज मैं इसको देखूगा। यह निश्चय करके रात्रि में चुपचाप देखते हुए उसने वधू के सब वृत्तान्त को जान लिया। ये सदा. कहां जाती हैं ? P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust