________________ 104] * रत्नपाल नृप चरित्र * पानी देने का निषेध कर दिया। सिद्धदत्त का अतुल धन किसी काम नहीं आया। अब इस प्रकार कष्ट पड़ने पर पुरासी लोग उसकी उपेक्षा करने लगे। कितने ही दिनों से भूख-प्यास से पीड़ित होकर उसने अपने घर का सारा धन देकर कैद से छुटकारा पाया। अपने घर आकर घर को धन धान्य से रिक्त "अच्छा होता हुआ भी निर्जीव के समान" देखकर उसे अत्यन्त दुःख हुआ और मन में विचारने लगा कि इतने दिन तक देवी की कृपा से लक्ष्मी मेरे घर में सब तरफ से प्रारही थी। इस समय त्याग और भोग से रहित तथा स्वजनहीन विवेक रहित मेरी लक्ष्मी इसी प्रकार चली गई। मेरा धन इस लोक और परलोक के अच्छे कार्यों में और कहीं पर भी उपयुक्त नहीं हुआ / जंगल . में उत्पन्न हुई चमेली की तरह स्वभाव से ही चंचल लक्ष्मी में आसक्त इस (मुझ) मूर्ख को धिक्कार है। मैंने और धनदत्त दोनों ने देवी से यथेष्ट वरदान पाया है, परन्तु पूर्व क्रम के प्रभाव से फल में विषमता हुई / इस प्रकार मानसिक दुःखों से विरक्त होकर सिद्धदत्त संसार छोड़कर तापस हो गया। / एक दिन राजा ने धनदत्त को बुलाकर विस्मयपूर्वक पूछा-हे श्रेष्ठिन् ! बहुत लाभ होने पर भी तूने स्त्र क्यों P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust