________________ 110] ॐ रत्नपाल नृप चरित्र * रसवती बड़े उत्साह से बनाई। उसी समय भूख-प्यास से बहुत व्याकुल, सार्थ से भृष्ट, तीन दिन से भयंकर जंगल को लांघकर कई महर्षि वहां आये। दयालु राजा और उस की रानी ने प्राशुक चावलों के धोवन से उन्हें निमन्त्रित किया। उन्होंने मिट्टी के बड़े पात्र में भरे हुए, समय पर प्राप्त हुए उसे शुद्ध जानकर ग्रहण कर लिया। वहीं पास रहे हुए वृक्ष की छाया में बैठकर अमृत की तरह उसे पीकर स्वास्थ्य लाभ किया। तदनन्तर उन मुनिओं के पास जाकर धर्मोपदेश सुनकर लघुकर्मा होने के कारण स्त्री सहित उस राजा ने श्रावक धर्म को अंगीकार कर लिया। अच्छी श्रद्धापूर्वक श्रावक धर्म की आराधना करके और समय पर समाहित मन से मरकर हे प्रजापाल रत्नपाल ! आप भाग्यनिधि उत्पन्न हुए हो / दुःख के दाह से उत्पन्न वैराग्य वाला सिद्धदत्त तापस फिर अज्ञान कष्ट करके जयामात्य हुआ। उस दिन तूने लोभ से उसका जहाज बारह दिन तक रोक रखा था, उस वैर से उसने यहां तेरा राज्य बारह वर्ष तक ग्रहण किया। ऋण / और बैर ये दोनों मूर्खता से मनुष्य द्वारा उपेक्षित हुए करोड़ों जन्म तक साथ जाते हैं। कभी जीर्ण नहीं होते। उनके कर्म विशेष करके अन्य भव में सौ अथवा हजार गुणा होकर वापिस उनको मिलते हैं / E asy : P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust