________________ 102 ] * रत्नपाल नृप चरित्र * गार में रखकर धनवान् होने के कारण दस कोटि सुवर्ण लेकर मुक्त कर दिया। सिद्धदत्त और धनदत्त दोनों में से.. किसी को इस कर्म से कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ, बल्कि सिद्धदत्त के विवेकहीन कृत्य से उसको धन और इजत का ... नुकसान उठाना पड़ा। का एक दिन किसी चोर ने धनदत्त के पास आकर सवा करोड़ के मूल्यवान् दस रत्न दिखाये और कहा- "ये दस रत्न तुम ले लो और केवल दस हजार रुपये मुझे दे दो।"...... यह सुनकर धनदत्त ने विचार किया कि निश्चय ही यह धन . चोरी का है, नहीं तो इतने अल्प मूल्य में ऐसे मूल्यवान् रत्न ..., ये कैसे देता ? चोरी के लाये हुए धन को खरीदने से . सज्जन को भी चोरी का कलंक लगता है। विद्वान् लोगों' . ... ने सात प्रकार के चोर कहे हैं तथा शास्त्र में भी ऐसा ही कहा है:... , . .. .: चोर श्चोरापको मन्त्री भेदज्ञः क्राणक्रयी। अन्नदः स्नानद श्चैव चौर: सप्त विधिः स्मृतः // 1 // ..चोर, चोरापक, मन्त्री, भेद को जाननेवाल, चोरी का माल खरीदने वाला, चोर को अन्न देने वाला तथा स्थान देने वाला, ये सात प्रकार के चोर होते हैं। 'विवेक.. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust