Book Title: Ratnapala Nrup Charitra
Author(s): Surendra Muni
Publisher: Pukhraj Dhanraj Sheth

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Page 120
________________ 2 चतुर्थ परिच्छेद 2 [ 103 से विकसित है बुद्धि जिसकी'. ऐसे धनदत्त ने लोभ को रोक कर उन रत्नों को ग्रहण नहीं किये / ... ये *.:. चोर ने उन्हीं रत्नों को सिद्धदत्त को दिखाये। उस - लोभी ने प्रसन्न होकर उनको ले लिया। चोरी करते 2 . उस चोर के पापं का घड़ा भर गया। एक दिन वह हाथ में चोरी का माल लिया हुआ इधर उधर दौड़ता हुआ नगर.रक्षकों के हाथ पड़ गया। उन्होंने उस चोर को चाबुक से निर्दयता पूर्वक पीटा और कहा–रे दुष्ट ! पुराना चुराय हुआ धनं कहाँ है ? साफ 2 वता / चाबुक से पीटे हुए - उसने जो जहाँ हुआ, उसे नाम और स्थान सहित सब कह दिया / पुरानी चोरी में गई हुई अनेक वस्तुओं की प्राप्ति से प्रसन्न हुए नगर-रक्षक ने अधिक धन के पाने की इच्छा से " फिर पूछा-रे ! जो तूने पहिले राजा के कोष से रत्न * चुराये थे, वे रत्न कहाँ है ? तब वह चोर कांपता हुआ - फिर कहने लगा-उन रत्नों को पहिले मैंने धनदत्त को दिखाया था, जब उसने नहीं लिये, तब मैंने सिद्धदत्त को दें दिये / नगर-रक्षक ने सब वृत्तान्त राजा को निवेदन कर दिया। उस समय चोरी से लाये हुए रत्न के खरीदने से राजा उस पर अत्यन्त क्रुद्ध हुआ। उसी समय सिद्धदत्त को बुलाकर कारागार में डाल दिया / सब प्रकार से उसे अन्न P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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