________________ * रत्नपाल नृप चरित्र * स्वजन्म को विता देता है / वह सिद्धदत्त निविवेक के कारण विवेक, विनय आदि से रहित बड़े लोगों की दृष्टि से गिर गया और आंखों पर वन्धी हुई पट्टी की तरह बुरा लगने लगा। : न देवी के वरदान के प्रभाव से अच्छे विवेक वाला 'धनदत्त सदा जिन भगवान की पूजा करता है / वह श्रद्धालु 'सदा सद्गुरु से धर्म को सुनता है। बड़े काम में भी किसी के साथ कलह नहीं करता। प्राणातिपात से विरत हुआ वह कभी असत्य भाषण नहीं करता और परस्त्री से पराङ्मुख वह अदत्त को कभी ग्रहण नहीं करता। वह विशुद्ध मति सातों व्यसनों को दूर रखता है। वह बड़े मनुष्यों से मिलता है और उनके उपदेशों को ग्रहण करता है ! दीन दुखियों पर दयालु तथा परोपकार में तत्पर रहता है / वह अल्प.धन वाला भी उदात्त आत्मा है। पान को यथोचित दान देता है। पर कार्य को करने में कुशल, पर सम्पत्ति में कभी द्वेष करता ही नहीं। स्वजन्म को अच्छे कार्यों से सफल बनाता है। सद्विवेक के प्रकट होने से विनय आदि से सुशोभित अन्य गुणों से भी अलंकृत वह शिष्टजनों में मान्य हुअा। एक दिन उस नगर में कोई विदेशी बनिया श्राराध्य व्याधि से ग्रस्त हुश्रा रात्रि में शून्य मठ में मर गया / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust