________________ . 14.] * रत्नपाल नृप चरित्र * ... जहाज कभी स्वर्ग जाने को ऊंचा हो रहा था, कभी पाताल ' में प्रविष्ट होने के लिए नीचे गिर रहा था। सिद्धदत्त आदि - ने अपने जीवन की आशा छोड़कर जहाज को हलका करने के लिये तमाम पण्य (सामान) समुद्र में डाल दिया। हलके हुये जहाज को वायु ने रूई की तरह उठाकर होनहार के योग से किसी शून्य द्वीप में जा पटका। उसकी. तीर को पाकर जीवन की आशा को प्राप्त हुए सिद्धदत्त आदि जहाज से नीचे उतर गये। वहां रहते 2 उनके साथ रही हुई भोजन सामग्री समाप्त हो गई। तब सिद्धदत्त ने उन ककड़ी के बीजों को समुद्र के किनारे पर बोये / तत्काल ही वेलें निकलीं, बढी और फली। उन फलों को खाकर लोग सुखी और प्रसन्न रहने लगे। / एक दिन एक जलमानुषी समुद्र से निकलकर डरती हई धीरे 2 उन फलों को खाने के लिए आई। उसने हाथ में एक रत्न लेकर दिखाया। उस धूर्त सिद्धदत्त ने फल खाती हुई उसको रोक दिया / तब देवी वरदान के माहात्म्य से उसने जान लिया कि यह मनुष्य फलों के मूल्य. में ये रत्न लेना चाहता है। यह विचार कर वह जलमानुषो समुद्र में प्रविष्ट होकर अनेक प्रकार की मणियें जाकर फलों के लोभ . से सिद्धदत्त को दे दी। तब उस सिद्धदत्त ने उतने ही फल : P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust