Book Title: Ratnapala Nrup Charitra
Author(s): Surendra Muni
Publisher: Pukhraj Dhanraj Sheth

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Page 116
________________ ॐ चतुर्थ परिच्छेद * एक बकरी खरीदी। जैसे अल्प वृष्टि से अल्प ही कीचड़ होता है, अल्प आहार से अल्प ही विसूचिक होती है, थोड़े ऊचे स्थान से गिरने पर थोड़ी ही पीड़ा होती है। उसी प्रकार कुदिन में अल्प व्यवहार से अल्प ही हानि होती है। फिर उसने उस बकरी को चरने के वास्ते बाहर छोड़ी / उसी दिन उस बेचारी बकरी को भेड़िया- खा गया। इस प्रकार तीन दिन तक बकरी को खरीद 2 कर उसने चरने के लिए वाहर छोडी, परन्तु एक भी वकरी लौटकर वापिस उसके - घर नहीं आई। तब उसने विचारा कि अभी मेरे दिन अच्छे नहीं हैं। यह सोचकर उसने फिर कोई कार्य प्रारम्भ नहीं किया। ... कितनेक दिन बीतने पर फिर उसने बकरी खरीद कर चरने के लिए बाहर छोड़ी। उस दिन उसके दो बच्चे पैदा हुए। इस प्रकार दिन की परीक्षा करने वाले उसने जो * जो वकरी खरीदी उस 2 बकरी के बच्चा पैदा होता था। यों करते 2 उसके पास अजावृन्द हो गया। / तदनन्तर अपने भाग्य को पलटा हुआ और अच्छे दिन आये समझ वह बड़े व्यापार करने की इच्छा से प्रातःकाल चौराहे में आया। वहां दूर देश से आये हुए सार्थेश से P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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