Book Title: Ratnapala Nrup Charitra
Author(s): Surendra Muni
Publisher: Pukhraj Dhanraj Sheth

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Page 109
________________ - रमपाल नृप चरित्र काष्ठ पर. चढकर समुद्र के ऊपर आकाश मार्ग को अपने नगर को ओर चली। वह काष्ठ बहुत भार होने से मार्ग में अत्यन्त धीरे 2 चला, इस कारण सूर्योदय को नजदीक जानकर दुखी हुई वे आपस में बातें करने लगीं। हे बहिन ! यह काष्ठ दुर्वह है। अतः समुद्र में आज. इसे छोड़ दें, कल दूसरा हल्का काष्ठ ले लेंगी। उस समय कोटर में रहे हुए सेठ ने बहू के वचन को सुनकर "मुझे इस काष्ठ के कोटर में बैठा हुया न जानकर कहीं समुद्र में न डाल. दें", इस विचार से भयभीत हुए सेठ ने कहा- मैं तुम्हारा ससुर इस काष्ठ के मध्य में हूँ। हे बहुओ ! इसलिए इस काष्ठ को समुद्र में मत डालना। बहुओं ने अपने ससुर को काष्ठ के मध्य में स्थित जानकर क्षोभ को प्राप्त किया। फिर पारिणामिक बुद्धि से उन्होंने आपस में ऐसा विचार किया। इस दुरात्मा ने अपना सारा दुश्चरित्र जान लिया है। अब यह यदि जीवित ही घर चला गया तो निश्चय करके अपने शुभ के लिए नहीं होगा। अतः सांप से भरे घड़े की तरह इसे समुद्र में डाल देना चाहिए। दूसरा ऐसा अवसर देखने में नहीं आयगा, ऐसा विचार कर उन्होंने उसको अपने मूर्तिमान् दुखी की तरह समुद्र में गिराकर और घर आकर अपनी . इच्छानुसार दान और भोग से घर में सुख पूर्वक रहने लगीं। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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