________________ .10] * रत्नपाल नप चरित्र * यन्यस्ताऽपि पितामह प्रहर के हा ! निया॑मन्दोः करै। . निर्यात्यर्क करै रुपैति च नमो नारी चरित्राय तत् // 1 // / अर्थात् समुद्र की तरंगों के साथ धूल में खेलती हुई लक्ष्मी को देखकर यह चंचल है इस विचार से विष्णु ने लक्ष्मी को एक स्तम्भ वाले कमल के कोने में रख दिया, इस प्रकार पितामह के पहरे में रक्खी हुई भी लक्ष्मी चन्द्रकिरणों से बाहर जाती है और सूर्य-किरणों से अन्दर आती है। इस कारण नारी चरित्र को नमस्कार है। स्त्रियों को असत् आचार के कुमार्ग से कुल ही अर्गला बन कर अथवा दुर्गति के दुख का भय ही निवृत्त कर सकते हैं / इस प्रकार विचार करता हुआ वह नौकर बहुत समय से जगा हुया होने पर भी धन के मिलने से गर्वित हुआ सोता रहा। दिया। तब सेठ ने विचारा कि यह नौकर पहिले तो खुद समय पर जग जाया करता था और बोलाने पर जल्दी बोलता था। आज क्या, यह जागता है अथवा जगा हुआ भी क्यों नहीं बोलता? क्या यह आज किसी नये धन के मिलने से गर्वित हो गया है ? अथवा किसी ने इसको ऊंचा , P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust