________________ 24) * रत्नपाल नप चरित्र * नाना पुरुष रत्नों की उत्पत्ति में रोहणाचल के समान रोहण नामक नगर में महाधनी शृंगदत्त नामक महाजन था / समस्त उत्तम मनुष्यों से शोभित उस नगर में नील के सदृश मलिनात्मा उस शृंगदत्त को विधि ने उस नगर के दृष्टि दोष को दूर करने के लिए ही मानो बसाया है। बत्तीस कोटि सुवर्ण का मालिक होने पर भी वह लोभी लन्ना को छोड़कर साधारण कार्यों को भी स्वयं करता था। उसके चार युवा . पुत्र हैं और वे विनय शील सम्पन्न हैं। चार ही यौवन के भार को प्राप्त हुई पुत्रवधू हैं। वह शृंगदत्त व्यवहार और आचार में धन व्यय करने में डरपोक दिल वाला था। इसी कारण वह किसी कार्य के बहाने से घर में अपने पुत्रों को ठहरने नहीं देता था। वह "कहीं मेरा धन खर्च हो जायगा" इस भय से मन्दिर में, पौषधशाला में, विवाह में, चौराहे में और समुदाय में कहीं भी नहीं जाता था। यदि कोई भिखारी मेरे घर में आवेगा तो पैसा खर्च होगा, इस भय से वह द्वार के दोनों कपाटों को देकर सांकल दे दिया करता था। याचकों के मांगने पर वह निष्ठुर गालियाँ देता था। कोई भिखारी जवरन् वर में आ जाता तो गला पकड़कर धक्का दे देता था। वह सदा धन की चिन्ता से हृदय में दुखी हुआ, पृथ्वी खनता हुआ, गर्दन को शिथिल कर गाल P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust