Book Title: Ratnapala Nrup Charitra
Author(s): Surendra Muni
Publisher: Pukhraj Dhanraj Sheth

View full book text
Previous | Next

Page 95
________________ 78 ] रत्नपाल नृप चरित्र * से एक को मांग लो। एक आदमी को दो वर नहीं दूंगी। तब कर्मानुसारिणी बुद्धि वाले लोभी सिद्धदत्त ने केवल इस लोक के प्रयोजन को सिद्ध करने वाली लक्ष्मी को मांगा / कर्मानुभाव से अल्प लोभ वाले सुबुद्धिमान् शुभ प्रायति 'भविष्य' को चाहने वाले धनदत्त ने उस देवी से विवेक मांगा। जिसकी सत्ता में जैसा वेद्य कर्म शुभाशुभ होता है, वैसी ही शुभाशुभ बुद्धि उत्पन्न होती है। कहा है: TR... यथा यथा पूर्व कृतस्य कर्मणः फलं निधानस्य मिवोपतिष्ठते / . तथा तथा तत्प्रतिपादनोद्यता प्रदीपहस्तेव मतिः पवर्तते // 1 // . अर्थात्-जैसे 2 पूर्व किये हुए कर्मों का फल खजाने में रहे हुए की तरह हाजिर होता है, तैसे 2 उनकों प्रतिपादन करने में उद्यत हुई बुद्धि हाथ में रहे हुए दीपक की तरह प्रवृत्त होती है। .... . . तदनन्तर उनके मांगे हुए वरदानों को "एवमस्तु" स्वीकार करके देवी अन्तर्धान हो गई। वे भी प्रसन्न होकर अपने अपने घर जाकर पारणा करने लगे। एक दिन देवी के वरदान से प्रेरित हुआ गुरूपरम्परागत योगी मध्याह्न के P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Loading...

Page Navigation
1 ... 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134