________________ * चतुर्थ परिच्छेद 2 समय उसके घर आया। सिद्धदत्त ने अत्यन्त भव्य अतिथिसत्कार करके उसकी खूब सेवा की। उस योगीराज ने उस को काकड़ी के बीज दिये और कहा कि मैंने इनको सिद्ध मन्त्र से वासित किये हैं। हे वत्स ! विधि पूर्वक बोने से ये तत्काल उग जाते हैं। दो घड़ी में बेलें सारे मकान पर छा जाती हैं और उन वेलों पर तत्काल चारों तरफ फल भी पैदा हो जाते हैं। वे फल अनोखे माधुर्य से अमृत को भी मात करते हैं। इनके खाने से भूख-प्यास की पीड़ा शान्त होती है। सन्निसात और सब प्रकार की वात, व्याधि तथा नेत्र-रोग, अठ्ठारह प्रकार के कुष्ठरोग शान्त होते हैं। यह कह कर योगी चला गया। तदनन्तर सिद्धदत्त ने अपने घर की बाड़ी में कितनेक बीजों को विधि पूर्वक बो दिये / उसी समय बेलें सारे घर - में विस्तृत होकर छा गई और फल भी उनमें लग गये। . क्योंकि प्राप्तवाणी कभी मृषा नहीं होती। भयंकर रोग से ... पीड़ित धनवान् लोग सौ, हजार तथा लाख रुपये देकर बड़े आदर से सिद्धदत्त से फल ग्रहण करते हैं। लोभ के कारण रोगियों से यथेष्ट ग्रहण किये हुए धन से सिद्धदत्त अल्प काल में ही धनवान् बन गया और जैसे 2 उसके घर में धनं बढता गया तैसे 2 उसके हृदय में उसकी स्पर्धा से लोभ भी बढता P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust