Book Title: Ratnapala Nrup Charitra
Author(s): Surendra Muni
Publisher: Pukhraj Dhanraj Sheth

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Page 90
________________ * तृतीय परिच्छेद * को सम्यक्त्व में दृढ़ करने के लिए कहा। हे आर्य पुत्र ! यदि मेरे इस कथन में आपको विश्वास न हो तो कौशाम्बी नगरी में जाकर भगवान् अजितनाथ प्रभु से पूछ लो। तदनन्तर स्त्री के कथन की प्रमाणिकता के निमित्त वह स्त्री सहित कौशाम्बी नगरी में गया और भगवान् को सर्वज्ञ जानकर गुप्त पदों से पूछा-हे स्वामिन् ! क्या वह वैसा ही है ? भगवान् ने कहा-हां / एवम् , ब्राह्मणों ने कहा-कैसे ? भगवान् बोले तत्वार्थों की श्रद्धा ही सम्यक्त्व कहा जाता है। इस प्रकार भगवान् के वचनों को सुनकर मुग्धभट्ट को विश्वास हो गया और वह मौन हो गया। .. परोपकारी आद्यगणधर ने सभा के प्रतिबोध के लिए भगवान् को वन्दना करके इस प्रकार पूछा-हे भगवन् ! इस ब्राह्मण ने क्या पूछा और आपने क्या उत्तर दिया, यह ब्राह्मण कौन है ? इस प्रकार गणधर के पूछने पर सर्वज्ञ भगवान् ने आदि से लेकर उसका समस्त वृत्तान्त कहा। उस वृत्तान्त को सुनकर बहुत से प्राणी प्रतिबोध को प्राप्त हुए और मुग्धभट्ट ने सम्यक्त्व की स्थिरता में निश्चलता को प्राप्त की। तदनन्तर परमार्थदर्शी मुग्धभट्ट ने वैराग्य से स्त्री सहित दीक्षा ले ली और क्रम से केवल ज्ञान प्राप्त कर परमानन्द पद को प्राप्त हुआ। पति के वियोग में अपने मन को विषय के . P.P.AC. Gurratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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