________________ __72 ] * रत्नपाल नृप चरित्र * विना विचारे काम किया। जिन देव ने तत्व श्रद्धा को ही सम्यक्त्व कहा है। जिनका सम्यक्त्व विशुद्ध है, उनके लिए सुप्राप बौधिक देवता लोग आपस में साधर्मिक भाव से पक्षपाती होते हैं। साधर्मिकों से भी अधिक जिनका प्रेम पुत्र आदिकों में है, सिद्धान्त नीति से निश्चय करके उनके मन में सम्यक्त्व का संशय है / सम्यक्त्व की उद्भावना के लिए तथा होनहार के कारण किसी उपयोग करने वाली शासन देवता ने इस बालक की रक्षा की है। यदि उस देवी की असावधानी से यह बालक जल जाता तो क्या यह आर्हत धर्म असत्य और आधुनिक हो जाता ? क्योंकि इस संसार में साधर्मिकों की सहायता के बिना भी तत्वज्ञानियों के हृदय में अच्छी तरह आर्हत धर्म निरन्तर बसा हुआ है। वास्तव में तत्व के अर्थ में श्रद्धा रखना ही सम्यक्त्व है। यह सम्यक्त्व हृदय के चलाचल होने पर संदिग्ध कैसे बन सकता है ? निश्चय ही दृढ़ धार्मिकों की दृष्टि में आपका यह कार्य बाल चेष्टा है। ऐसा सोचना ही योग्य नहीं, करना तो दूर रहा। - तदनन्तर कौशाम्बी नगरी में समवसरण किये हुए सुरेन्द्रादिकों से अनुगत श्रीमान अजितनाथ प्रभु को पधारे सुनकर सुन्दर अवसर को जानने वाली सुलक्षणा ने अपने पति P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak-Trust .::..