Book Title: Ratnapala Nrup Charitra
Author(s): Surendra Muni
Publisher: Pukhraj Dhanraj Sheth

View full book text
Previous | Next

Page 88
________________ * तृतीय परिच्छेद * [71 से खिन्न हुए उस श्रावक ब्राह्मण ने “यदि जिनोक्त धर्म सच्चा है तो अग्नि में पड़ा हुआ यह बालक अक्षत अङ्ग वाला हो, यदि यह जिनोक्त धर्म सच्चा नहीं है और आधुनिक है तो यह अग्नि में पड़ा हुआ बालक भस्मसात् हो जात्रो।" इस. प्रकार कहते हुए उसने सब ब्राह्मणों के हाहाकार करने पर भी उसं बालक को उस जलती हुई आग में एकदम डाल दिया। तदनन्नर सर्वज्ञों के वचनों का उद्योत करने वाली किसी देवी ने उस बालक को कमल पत्र पर रख दिया / वह सुरी पूर्वभव में गुण कर्म वाली होने से श्रामण्य धर्म की विराधना करने से मरकर व्यन्तर देवी हुई। एक समय उसने भगवान् केवली से पूछा कि हे नाथ ! मैं सुग्राप बोधी हूँ कि नहीं ? तब भगवान् ने फरमाया कि तू निश्चय करके सुप्राप बोधी है, परन्तु तुझे विशेष रूप से सम्यक्त्व की उद्भावना में उद्योग करना चाहिए। उस दिन से वह देवी अवधि ज्ञान से देखती हुई ऐसे कार्यों में सावधान रहती है। उसने बालक को अग्नि में पड़ते हुए देखकर कमल के पत्ते पर रख लिया / यह वृत्तान्त देखकर अनेक द्विज आर्हत धर्म में असूया से रहित हो गये। मुग्धभट्ट भी बालक को लेकर अपने घर आया और सारा वृत्तान्त अपनी स्त्री सुलक्षणा को प्रसन्नता पूर्वक सुना दिया। उसने कहा—पति देव ! आपने यह P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Loading...

Page Navigation
1 ... 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134