Book Title: Ratnapala Nrup Charitra
Author(s): Surendra Muni
Publisher: Pukhraj Dhanraj Sheth

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Page 60
________________ द्वितीय परिच्छेद * [45 फलाहार करती हुई तपस्या करने लगी। अपनी लड़की के दुःख से दुःखी हुए राजा ने किसी ज्योतिर्विद से पूछा, और उसने साफ 2 कह दिया कि हे राजन् ! सौभाग्यमंजरी के कंकण को हरण करने वाला पुरुष-रूप में कामदेव को जीतने वाला सलक्षण सम्पन्न है और वह स्वयं ही उसके स्वयम्वर में उपस्थित होगा और वह वहां उसके साथ विवाह करेगा। दैवज्ञ के वचन को सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ। तदनन्तर नृप ने अपनी सौभाग्यमंजरी कन्या के लिए स्वयंवर महोत्सव रचा। उस स्वयंवर में दूतों द्वारा बुलाये हुए अनेक राजा लोग आये थे। कौतुक से महाबल आदि विद्याधरों के साथ रत्नपाल नृप भी वहां आया / १उस स्वयंवर में अच्छे 2 अलंकारों से सजे हुए सुन्दर मंचों पर बैठे हुए नभश्चरों को देखती हुई सौभाग्यसुन्दरी ने अपने कंकण से मंडित राजा रत्नपाल को वरण किया। यह देख हेमांगद आदि विद्याधर बहुत प्रसन्न हुए। वलय मंडित नृप के वरण करने पर अन्य खेचर लोग मलिन मुख हुए आपस में विचार करने लगे कि इतने वीर विद्याधरों के रहते यदि यह मानव नृप इस कन्या को विवाह लेगा तो ये सब विद्याधर मरे हुए से ही हुए। इस प्रकार अपने अपमान से अत्यन्त क्रुद्ध हुए खेचर लोग सजकरके सेना सहित युद्ध करने P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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