________________ 68 ] * रत्नपाल नृप चरित्र के - पैशाचिक माख्यानं श्रुत्वा गोपायनं च कुलवध्वाः। 4 संयम योगैरात्मा निरन्तरं व्यापृतः कार्यः // 1 // अर्थात् पैशाचिक अाक्षान् को तथा कुलवधू के रक्षण ___को सुनकर आत्मा को निरन्तर संयम योग में लगाये रखना योग्य है / . .. . ___सर्व और देश-भेद से विशुद्ध संयम दो प्रकार का है / सम्यक्त्व की दृढ़ता के निमित्त उसका स्वरूप यह है जो प्राणी जीवादि नवतत्वों को स्वभाव से अथवा उपदेश से अच्छी तरह समझकर उममें श्रद्धा रखता है, उसको सम्यक्त्व कहते हैं। इस सम्यक्त्व में स्थिर बुद्धि वाला जो मनुष्य यथा समय सब आवश्यकादि क्रिया करे, वह शीघ्र ही मोक्ष को प्राप्त होवे / . इस प्रकार सदुक्ति से पूर्ण साध्वी के उपदेश से लघुकर्म "हलवाकर्मी" होने के कारण उसने शीघ्र ही आर्हत धर्म को अंगीकार कर लिया। तदनन्तर साध्वीजी ने उसको समस्त श्रावक की क्रिया सिखा दी और वह यथा समय श्रद्धापूर्वक श्रावकाचार को पालती थी ! ज्ञानावरणी कर्म के क्षयोपशम से साध्वी के पास जाकर, प्रवचन को सुनकर क्रम से प्रवीण हो गयी। उस दिन से लेकर उसका नवीन नवीन अर्ह योग्य कर्म में संलग्न मन te.. . P.P.AC. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust