________________ ॐ तृतीय पच्छेिद * [67 अथवा गुरूजी द्वारा उपदेश की हुई कोई अन्य है ? मैं साध्वीजी को मनोनिग्रह का साधन पूछु। क्योंकि कुलस्त्रियों के लिए यह शोल सत्र स्थानों में उपयोग युक्त दीखता है। यह उपर्युक्त मन में विचार करके सुलक्षणा ने साध्वीजी से पूछा-हे मातः ! मुझे अच्छी तरह से समझाकर कहो कि ये तरुण साध्वियें किस प्रकार चंचल मन को रोकती हैं ? उस गणिनी ने कहा—हे वत्से ! नये नये सत्कृत्यों में संलग्न मन वाली साध्वियों का मन कभी कुमार्ग में नहीं जाता। जैसे हाथी के मर्म स्थान पर अंकुश के रखने पर सदा उसमें लगा हुआ हाथी का मन कभी उस ध्यान को नहीं छोड़ता, इसी प्रकार साध्वियें मनोनिग्रह करती हैं। कभी भी विषयों को स्मरण नहीं करता। जिस प्रकार गले में वन्धा हुअा बन्दर वश में आता है, उसी प्रकार चंचल . भी मन आत्मा के व्यापार में लगा हुआ योगी के वश में रहता है। आत्मा के प्रशस्त अथवा अप्रशस्त व्यापार में लगा हुआ मन वायुमार्ग आकाशं में रूई की तरह निश्चय करके प्रवृत्त रहता है। सत्पुरुषों को सदा अपना मन संयम योग में लगाना चाहिए / उसमें प्रवृत्त हुआ मन कभी कुमार्ग में नहीं जायगा। प्रशम रति में जो लिखा है वह आगे लिखा जाता है / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust