________________ * रनपाल नृप चरित्र * उद्धार करने के लिए कृपा पूर्वक निःस्वार्थ होती हुई भी पृथ्वी पर विहार करती हैं। माता आदि समस्त संसार के सम्बन्ध को छोड़कर इनका मन चिरकाल से सर्व सावध विरति में लगा हुआ है। इनमें कई तो राजाओं की पुत्रियाँ हैं और कई महाजनों की। ये भोगों से विरक्त, निःसंग धर्म के आश्रित हैं। राजा और महाजन आदि सब लोग श्रद्धायुक्त होकर इनका गौत्रदेवी के समान तथा माता के सदृश बहुत आदर करते हैं। हे सखी ! शम और समता रस की प्रपा के सदृश इनकी संगति दुर्जन मनुष्यों को नहीं मिलती / समस्त दुःख को नष्ट करने वाली इनकी बंदना और आराधना. तो दूर रहने दो, केवल इनकी चरण-रज को मस्तक पर लगाने से मनोवाञ्छित सिद्ध होते हैं। इस प्रकार सखी की वाणी से जान लिये हैं साध्वी के सद्गुण जिसने, ऐसी उस सरल प्रकृति सुलक्षणा ने मन में विस्मय पूर्वक विचार किया कि मेरे पति को देशान्तर गये हुए बहुत ही अल्प समय हुआ है। इस थोड़े से समय में भी मेरा चंचल मन सन्मार्ग में नहीं ठहरता, ये साध्वियें सब काल में, सब उपाधियों से शुद्ध शील को पालती हुई जवानी के चंचल मन को कैसे रोकती होगी ? क्या इनके पास परम्परा से आया . हुआ कोई मन को रोकने का मन्त्र है या कोई महोषधि है P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust