________________ * तृतीय परिच्छेद 2 महात्मा तेरी कन्याओं को निरोग करेगा। ये देवी के वचन सुनकर नृपादि सब प्रसन्न हुए और वह देवी बिजली के स्फुरण के समान अदृश्य हो गई। देवी ने तुझे कन्याओं की व्याधि को शान्त करने के लिए लाया है। इस नगर से तेरा नगर पाँच सौ योजन दूर है। देवी की वाणी से आपके आगमन को जानकर हर्ष पूर्वक बड़ी ऋद्धि के साथ राजादि .. सब लोग इस समय आरहे हैं। उस मनुष्य के इस प्रकार कहते ही नृपादि सब ने आकर राजा रत्नपाल को नमस्कार किया और विनय पूर्वक बड़े उत्सव के साथ उसे नगर में ले गये / तदनन्तर नृप आदि ने परोपकारी राजा रत्नपाल से दोनों कन्याओं को निरोग करने की प्रार्थना की। यह सिद्ध रस शरीर के पास रहने पर सब अवसरों में उपयोगी होगा। इस विचार से राजा ने अपने भुजबन्द के छोटे से कंपले में रक्खा था। उस रस से कृपालु राजा ने पहिली कन्या के मस्तक पर स्पर्श किया, तत्काल ही वह कन्या नेत्रानन्ददायी रूप और शोभा से युक्त हो गई। फिर उसी रस से छोटी कन्या के आंख में अञ्जन करते ही वह दिन में भी ताराओं - को देखने में समर्थ दृष्टि वाली हो गई। तदनन्तर गुण से खरीदी हुई दोनों कन्याओं को पिता रत्नसेन ने रत्नपाल को ही दे दी और उसने उनके साथ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust