________________ * तृतीय परिच्छेद * [56 प्रकार विचार करके सामन्त और मन्त्री की सलाह से सिंहासन पर राजा की खड़ाऊ रखकर समस्त राजवर्ग नमस्कार करने लगा। उस शून्य राज्य में भी राज्य का अच्छा प्रबन्ध होने पर और दान मान से सन्तुष्ट किये जाने पर कोई भी राजवर्गी नहीं विघटित हुआ (फूटा)। ___ अब राजा के आने पर दर्शन की उत्कण्ठा वाले अत्यन्त स्नेह संभ्रान्त हुए सब लोग शीघ्र सामने गये / राजा रत्नपाल ने सबका यथोचित सत्कार करके अपने नगर में प्रवेश किया और मार्ग में दीन दुखियों को दान से प्रसन्न किया। जैसे उदयाचल के शिखर पर सूर्य के उदय होने पर चक्रवाकी प्रसन्न होती है, उसी प्रकार अपनी राजसभा में महीपति रत्नपाल के आने पर सब प्रजा आनन्दित हुई। अपने चिरकाल के वियोग से अशान्त मन वाली पत्नियों को स्नेहपूर्ण वार्तालाप से प्रसन्न किया / शृंगारसुन्दरी 1, रत्नवती 2, पत्रवल्ली 3, मोहवल्ली 4, सौभाग्यमंजरी 5, देवसेना 6, गंधर्वसेना 7, कनक मंजरी 8,. गुणमंजरी 5, ये नव पटरानिये रत्नपाल नृप के थीं। देवलोक के सदृश समृद्धि वाले नृप रत्नपाल के 20 करोड़ गांच थे। हजारों रत्न की जातियाँ थीं और बीस 20; P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust