________________ * द्वितीय पच्छेिद * [41 को स्मरण कर हाथी की पीठ पर से कूद पड़ा और तैर कर किनारे पर आ गया। वहां वह किसी दिव्य महल में प्रविष्ट हुया। आगे जाते हुए उसने तीसरी मंजिल में दो बड़े 2 भस्म के ढेर देखे, उससे थोड़ी दूर पर रखूटी पर टंके हुए रस से भरे हए तूम्बे को राजा ने देखा / अनन्तर उतावली से उस तूम्बे को लेने पर उसमें से कुछ छीटें गिरने से उस भस्म ढेर से दो स्त्रिये उत्पन्न हुई। विस्मित हुए राजा ने उन दिव्यरूपा स्त्रियों से पूछा-तुम दोनों कौन हो ? अचानक इस भस्मपुञ्ज से तुम कैसे प्रकट हुई ? वे दोनों दिव्यांगनायें सप्रेम राजा को देखती हुई इस प्रकार कहने लगीं-हम दोनों विद्याधरेश्वर महाबल की कन्यायें हैं और हमारा नाम पत्रवल्ली और मोहवल्ली है। हे सुन्दर ! क्रम से हम यौवन को प्राप्त हुई। विवाह करने की इच्छा से इस महा बलशाली मातंग ने परसों हमें हरण करके विद्या निर्मित घर में रक्खा है / जब वह कहीं बाहर जाना चाहता है, तब ईष्यालुचित्त हमें विद्या के बल से भस्मराशि चना डालता है और बाहर चला जाता है। वापिस लौटकर हमें फिर इस रस से जीवित करता है। हे सुन्दर युवक ! आज तुम हमारे पुण्यबल से यहां आये हो। इस समय वह दुरात्मा बाहर गया हुआ है, कहीं तुम्हें यहां आया हुआ न जान जाय / इस प्रकार. उन P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust