Book Title: Ratnapala Nrup Charitra
Author(s): Surendra Muni
Publisher: Pukhraj Dhanraj Sheth

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Page 50
________________ * द्वितीय पच्छेिद 635 पुत्री को योग्य वर मिला, ऐसा सोचकर फिर बहुत प्रसन्न हुआ। . अतुल राजलक्ष्मी के पाया हुआ और रत्नवती स्त्री के साथ पांच प्रकार के विषय सुखों को भोगता हुआ भी रत्नपाल नृप दुष्ट मन्त्री द्वारा किये गये विश्वासघात को . "जो उसके हृदय पर अङ्कित था" भूला नहीं। . . ..... किसी कवि ने कहा है:...मृगेण दत्तां किं लत्तां विस्मरेज्जातु केसरी।. यत तां स नूनं समये स व्याजां वालयिष्यति // 1 // '' अर्थात् मृग द्वारा मारी हुई लात को सिंह क्या भूल सकता है ? समय आने पर वह निश्चय करके व्याज सहित उसे चुकायेगा / उचित समय और शकुन देखकर बहुत बड़ी भारी सेना लेकर नृप रनपाल उस दुष्ट मन्त्री को जीतने के लिए अपने नगर की ओर चला। ...एक दिन मार्ग में घने जंगल में सेना सहित नप रात्रि के विश्रान्ति हेतु ठहरा.। अर्द्धरात्रि के समय दूर से आती हुई दिव्य गीत-ध्वनि को सुनकर तलवार हाथ में लेकर अकेला ही कौतुक से वहां चला गया। वहां उसने ऊचे 2 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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