Book Title: Ratnapala Nrup Charitra
Author(s): Surendra Muni
Publisher: Pukhraj Dhanraj Sheth

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Page 49
________________ * কাল নৃৎ বন্তি # हुआ, इस समय कन्या निश्चेष्ट और मृतक तुल्य हो गई है। जो कोई मनुष्य मन्त्रतन्त्र या औषधि के बल से उसको जीवन दान देगा, राजा उसे अर्द्धराज्य के साथ अपनी कन्या का विवाह कर देगा। उस घोषणा को सुनकर अत्यन्त . करुणा से और अपनी निपुणता से निस्पृह भी नृप रत्नपाल पटह के स्पर्श द्वारा राजसभा में गया / " ___ इस असाधारण याकृति वाले में शुद्ध आम्नाय विद्या बन सकती है, ऐसा सोचकर राजा ने आदर से उस कन्या को उसे दिखा दिया। राजकुल में तथा स्त्रियों में आडम्बर की पूजा होती हैं, ऐसा सोचकर रत्नपाल ने भी नाना आडंबर किये। फिर औषधि के रस से उसके विष-वेग को दूर करके तत्काल उसको जिला दिया। जिससे उसका पिता बहुत प्रसन्न हुआ। इस अज्ञात नर के कुल आदि ज्ञात न होने से राजा व प्रजा में शंकायें पैदा होने लगीं, परन्तु वचन बद्ध होने से राजा को अपने आधे राज्य के साथ अपनी कन्या का विवाह उसके साथ करना पड़ा। तदनन्तर यह विनयपाल का पुत्र पराक्रमी राजाधिराज रत्नपाल है किसी कारण से अकेला है, ऐसा भाट लोगों के कहने पर बलवाहन राजा ने मन में प्रसन्न होकर कहा कि P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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