Book Title: Ratnapala Nrup Charitra
Author(s): Surendra Muni
Publisher: Pukhraj Dhanraj Sheth

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Page 48
________________ करने योग्य. मनुष्यों पर उपकार करके फिर उन्हीं के याचक होते हैं, उनमें मनुष्यत्व क्या है. मानो ब्रह्मा के बुढापे का विकार: है। .. . : FIR BLAP . 1 तदनन्तर उस विद्याधर ने नहीं चाहते हुए भी नृप को विषवेग को हरने वाला औषधिवलय "कड़ी" दिया। अनन्तर नृप रत्नपाल से आज्ञा लेकर स्त्री सहित अपने नगर को चला गया / रत्नपाल नृप धीरे उस पर्वत से नीचे र मूलस्थान नामक नगर में गया। वहां दीनं अनाय की कुटी में रहे हुए विदेशी श्रावक को बहुत रोगी देखा, तीन दिन तक राजा ने धर्म बुद्धि से पथ्य और औषध आदि से सेवा की। परन्तु उसके जीवन की कोई आशा नहीं देखकर जा पुण्य कृत्य होने चाहिए वे सब पुण्य कर्म करवाये / समाहित मन से मर कर वह विदेगी श्रावक देवलोक में INFjENTER_FE IT IELis रत्नपाल नृप प्रातःकाल नगर में प्रविष्ट हुआ। राजमार्ग में जाते हुए उसने पटह घोषणां सुनीं / वह 'पटह घोषणी इस प्रकार हो रही थी लेमन्जतना जानने वालोबल वाहन सजा के रत्नवती नामक पुत्री को सक्ति में दुष्ट सूर्प ने इसा है। अनेक प्रकार के आया करने पर भी कुछ लाभ नहीं "देवता' P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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