________________ 36 ॐ रत्नपाल नृप चरित्र शिखर वाला एक देव मन्दिर देखीं, जो अत्युज्वल तथा रमणीय था। सत्व की खान राजा रनपाल जब 'उसमें प्रविष्ट हुआ तब तक सखियों के . साथ., कोई. विद्याधर की कन्या जिनेवर भगवान् के आगे अनेक प्रकार के उत्सव और नृत्य गीत आदि..करके सुन्दर विमान में वैठकर शीघ्र अपने स्थान को चली गई / मन्दिर में जाकर ऋषभदेव भगवान् की प्रतिमा को नमस्कार करके और उस मन्दिर की सुन्दरता को देखने की इच्छा से चारों तरफ घूमते हुए राजा ने सामने पड़े हुए सौभाग्य मंजरी के नाम से अङ्कितः कंकण को देखकर ग्रहण कर लिया / प्राप्तकाल अपनी सेनाल्में आकर उसके आगे 2 चला और अपने राज्य की प्राप्ति से उत्कण्ठित हुआ क्रम से अपने नगर के पास पहुंचा। ........ 1 . उस समय प्रतापशाली नृप रत्नपाल को अपने... राज्य को लेने के लिये झाले. हाए सुनकर, दुःखी जयपाल ने मन में विचार किया-"मुझ समर्थ- का यह केचारा अकेला क्या कर सकता है ?" ऐसा विचार कर मैंने इसको जीवित ही वन में छोड़ दिया था,मुझे अब मालूम हुआ कि दुर्दैव से प्रेरित होकर मुझ कुबुद्धि में काले सांप की पूंछ काटकर अपनी ही मृत्यु के लिए छोड़ा था। राजनीति में कहा गया है: P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust