________________ द्वितीय परिच्छेद ? विराध्यते न नीतिज्ञे महानात्म हितार्थिभिः / / :: कर्हि चित्स विराद्धश्चेत् तर्हि जीवन् न मुच्यते // 1 // अर्थात् नीतिज्ञ लोग अपनी भलाई की इच्छा से बड़ों के साथ विरोध नहीं करते, 'यदि किसी प्रकार बड़े मनुष्य से विरोध हो जाय, तो जीवित नहीं रह सकता। अन्य शास्त्र में भी कहा है: उत्तिष्ठन्तो निवार्यन्तै सुखेन व्याधि शत्रवः 'भवन्त्युपायों साध्यास्ते बद्ध मुलाम्तु 'मृत्यवे // 1 // ....... अर्थात् उठते हुए रोग और शत्रु सुख से दूर किये जा सकते हैं, वे ही बद्धमूल होने पर, अनेकों उपायों से भी असाध्य हो जाते हैं और मृत्यु कारक होते हैं। गये हुए समय.. को सोचने से अब क्या प्रयोजन ? प्रत्युत रण में संमुख होकर मर जाऊ या उसे मार डोलू, शूर वीरता से युद्ध में मर जाने पर. स्वर्ग की प्राप्ति होती है और शत्रु को मारने पर राज्य की प्राप्ति होगी। इस प्रकार युद्ध में शूरवीरों के दोनों हाथों में लड्डू हैं, एक बात तों .. निश्चित है। यह विचार कर जय मन्त्री धैर्य धारण कर राजा . के संमुख आकर सेना सहित युद्ध करने के लिए तैयार हो P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust