Book Title: Ratnapala Nrup Charitra
Author(s): Surendra Muni
Publisher: Pukhraj Dhanraj Sheth

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Page 32
________________ * द्वितीय परिच्छेद * है। न में विचार करने लगा कि शांति करते हुए यह कैसा . तालोदय हुआ, यह हर्ष के समय विषाद, भोजन के समय छींक, इस मंगलमय समय में यह भयानक रणागम त्यों पैदा हुआ ? : मालूम होता है कि यह लड़की कुनक्षत्र में उत्पन्न हुई है, इसलिए इस समय काल रात्रि की तरह सुभट श्रेणी का संहार करने के लिए पृथ्वी पर अवतीर्ण हुई / है। उस समय विचक्षण बुद्धि वाली कन्या ने वहां आकर अपने निमित्त काल प्रलय को होता हुआ देखकर अपने पूर्वव के कर्मों की निन्दा करती हुई मन में विचार करके प्रपने भाव को एकान्त में चतुरबुद्धि नामक मन्त्री से कहा प्रौर फिर हाथ उठाकर दूर से भयानक युद्ध को निवृत्त रती हुई क्रोध से युद्ध में सज्जित हुए संब राजाओं को स्पष्टः णी से कहाः—हे भूपालो ! मेरे लिए युद्ध करना ‘पर्वत - को खोद कर मूषक को निकालने' के समान है। यह आप गोगों के लिए योग्य नहीं है। खेद के साथः कहना पड़ता. है कि हठ से भरे हुए, दूसरों के तेज को न सहन करने गले शूरवीर लोग राष्ट्र, कोष और सेना का वचन मात्र से [य कर देते हैं। अब आप लोग कलह को छोड़कर सुनो। तो मेरे साथ विवाह करना चाहता हो और सत्वाट्य यानि हसी हो वह. 'मेरे साथ काष्ठ का भक्षण करे यानि जल [ाय / ' ऐसी कन्या की वाणी को सुनकर सब राजा लोग P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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