________________ ____18 ] * रत्नपाल नृप चरित्र * युद्ध से निवृत्त हुए और विस्मित होकर आपस में विचार करने लगे—कौन मृत पुरुष बड़े 2 पर्यों में कभी शामिल हो सकता है अर्थात् नहीं। जीवित मनुष्य ही इस संसार में सैंकड़ों सुख, उपभोग प्राप्त करता है। आज हम लोगों को हमारे पुण्य प्रभाव से सर्वाङ्गीण सुख प्राप्त है, केवल स्त्री के लिए मरने पर आत्म हानि और मनुष्यों में हँसी होती है, इस लिए हमको मरने से कुछ लाभ नहीं। जीवन से बढ़कर हमको कोई नजर नहीं आता। यह बालक स्त्री के लिए मरता हुआ काल के मुख में पहुँचेगा। ___तदनन्तर वह कन्या रत्नपाल को संकेत करके उपवास करती हुई तीन दिन तक नदी की तीर पर रही, तब तक मन्त्री ने बड़े 2 काष्ठों से महा चिता बनाकर उसके नीचे अपने सेवकों से एकान्त में सुरंग खुदवादी। तदनन्तर स्नान करके रत्नपाल और कन्या दीनों को / दान देकर उन राजाओं के देखते देखते चिता पर चढ़। गये। उस समय पुरवासियों के हाहाकार करते हुए भी. पास रहे हुए राजपुरुषों ने उस चिता में आग लगादी / पूर्वोक्त सुरंग द्वारा कन्या और वरं दोनों निकल कर राजा के / महल में एकान्त में जा पहुँचे / वीरसेन भी चिता को जला: कर अपने महल में गया। विषाद और विस्मय से व्याप्त / P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust