________________ 22] * रत्नपाल नृप चरित्र * अर्थ-स्त्री का चिरकाल तक पिता के घर रहना, मनुष्यों का ससुराल में बहुत समय तक रहना, यमियों का एक स्थान पर बहुत समय तक रहना, लोक में हास्यास्पद है। वह राजकुमार उपरोक्त. शिक्षा के सब मर्म को जानता हुया, पिता के घर को जाने की इच्छा रखने वाला है तो भी श्वसुर के आग्रह स वहा रहा। ...... हाथी-घोड़े, .मणि-मुक्ता आदि से राजा ने राजकुमार रत्नपाल का आदर किया। तदनन्तर सेना सहित कुमार शृंगारसुन्दरी को लेकर अपने नगर को रवाना हो गया। विवाह करके आये हुए अपने पुत्र को प्रसन्न हुए राजा ने बड़े धूमधाम से नगर में प्रवेश कराया। तदनन्तर राजा ने अपने पुत्र को तेजस्वी और महोत्साही जानकर मन्त्री और सामन्तों की साक्षीपूर्वक राजसिंहासन पर बिठा दिया। फिर स्नेह से ‘परिणाम में हितकारक शिक्षा दी कि-दुष्टों को दण्ड देना और साधुओं का पालन करना / कहा भी हैदुष्टस्य दण्डः सुजनस्य पूजा न्यायेन कोषस्य च सम्प्रवद्धिः / अपक्षपातो रिपुराष्ट्ररक्षा, पंचैव यज्ञा कथिता नृपाणाम् // अर्थात् दुष्ट को दण्ड देना, सज्जन पुरुषों का मान और पूजा करना, न्यायपूर्वक कोष की वृद्धि करना, पक्षपात न करना, शत्रुओं से राज्य की रक्षा करना, ये पांच ही राजा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. * Jun Gun Aaradhak Trust