________________ .30 ] .. ॐ रनपाल नृप चरित्र * . अंगरक्षा में नियुक्त सेवक कैसे मेरे खिलाफ हो गए ? संसार का यह नियम ही है कि जो लोग संपन्न होते हैं, उनके अनुगामी सब लोग हो जाते हैं, वही मनुष्य जब विपत्ति में होता है, तब संबन्धी भी पराये और प्रिय शत्रु बन जाते हैं। किसी ने कहा है:संपदि परोऽपिनिजतां निजोऽपि परता मुपैति विपदिजनः / . ताराभि ब्रियते निशि रश्मिभि रपि मुच्यतेऽहि शशी // 1 // .. .. अर्थात-संपत्ति में शत्रु भी अपना बन जाता है और विपत्ति में अपना मनुष्य भी शत्रु बन जाता है। चन्द्रमा रात्रि में ताराओं से घिर जाता है और दिन में वही अपनी . किरणों से रहित हो जाता है। भाग्य भ्रष्ट मनुष्य के भक्त अनुचर क्या कर सकते हैं ? जैसे अन्धे के लिए सूर्य की ज्योति क्या कर सकती है ? पूर्वभव के कर्मानुसार मनुष्य को ... सम्पत्ति या विपत्ति प्राप्त होती है / किसी विद्वान् ने कहा है:सुखस्य दुःखस्य न कोऽपिदाता, परो ददाःतीति कुबुद्धि रेषा पुराकृतं कर्म तदेव भुज्यते, वंजीव हे ! निस्तर यत्त्वयाकृतं // अर्थात्-सुख दुख का देने वाला कोई नहीं है, दूसरे के द्वारा दुःख मिला यह सोचना कुबुद्धि है / जो कर्म P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust