________________ * द्वितीय परिच्छेद * . [ 27. इधर उधर भाग गये, धन धान्य, मणि-मुक्ता, स्वर्ण रुप्यादि = वस्तुओं से परिपूर्ण उसका घर शीघ्र जल गया, फिर अचानक / चतुरंग सेना सहित उसके शत्रुओं ने आकर उसके देश, दुर्ग आदि बलात्कार से जीत लिए / इस प्रकार तीन दिन की अवधि के अन्दर 2 वह विद्याधर नरेन्द्र मनुष्यमात्र रह गया और दुखी होकर कहने लगा कि हाय ! मेरे पर दुख के ऊपर दुःख के पहाड़ क्यों टूट रहे हैं, ऐसा क्यों हो रहा है ? ये नये 2 / दुःख क्यों आरहे हैं। इस प्रकार विषाद और विस्मय से जब वह विचार करता है, उस समय एक विद्याधर ने आकर कहा कि हे स्वामिन् ! नन्दीश्वर द्वीप से प्राते हुए मैंने एक बड़ा आश्चर्य देखा कि 'रत्नपुर में तीन दिन से सूर्य अस्त नहीं होता,' इसलिए वहां के महाराज नरपति शान्तिककर्म कराते हैं। उसके वचन को सुनकर मन में चकित हुए विद्याधर ने सोचा कि यह सब आश्चर्य परम्परा उसी सती के वचन से हुई। हाय ! मुझ दुष्ट ने उस महासती को कुपित करके सव विपरीत कर दिया। - अब उस नगर में जाकर उस महासती से क्षमा मांगं, नहीं तो उसका शाप अब भी वज्र और अग्नि के समान दुःसह होगा / इस प्रकार पश्चाताप से तृप्त हृदय वाला वह विद्याधरेन्द्र उस नगरी में गया और अपने दुराचरण को प्रकट करता P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust