________________ ** द्वितीय परिच्छेद के इन्द्राणी ने प्रसन्न होकर इस कन्या को भी सब आभूषण दिये / “पहिले अपनी सन्तान के विरह से उत्पन्न हुए दुःख . को नहीं जानने वाले तुम्हारे माता पिता इस समय तुम्हारे वियोग से पैदा हुए दुख को न देखें।" इस विचार से अन्य के दुःख से दुखी होकर हम दोनों को इस वक्त शीघ्र मृत्य लोक में भेजा है। कर्ण परम्परा से सर्वत्र फैलने वाली इस बात को विरोधी राजा लोगों ने सुनकर बड़ा आश्चर्य किया और सत्वहीनता से अपने को उन फलों से वंचित मानते हुए विषादयुक्त होकर दुर्दैव की निन्दा करने लगे। ___ इस प्रकार पाणिग्रहण के उपद्रव के विलय होजाने पर वीरसेन राजा ने प्रसन्न होकर अच्छे लग्न में रूप, सौभाग्य और लावण्य से मूर्तिमान् कामदेव के समान राजकुमार के साथ अपनी पुत्री का विवाह धूमधाम से कर दिया। सज्जनों द्वारा किये गये अथिति सत्कार से आदर पाते हुए रत्नपाल ने कुछ काल तक ससुरधर में निवास किया। बड़े लोगों को महातीर्थ की तरह ससुराल में बहुत दिन तक नहीं रहना चाहिए क्योंकि महत्व और मान की हानि होती है। ' अन्यत्र किसा विद्वान् न कहा ह अन्यत्र किसी विद्वान् ने कहा है: . चिरं पितृगृहे स्त्रीणां नराणां श्वसुरो कसि / : : वास श्चै कत्र यमिनां नूनं हास्यास्पदं जने // 1 // III P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust