Book Title: Ratnapala Nrup Charitra
Author(s): Surendra Muni
Publisher: Pukhraj Dhanraj Sheth

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Page 34
________________ * द्वितीय परिच्छेद * [ 16 पुरवासी भी अपने 2 घरों में चले गये / “हमारे हठ से यह कन्या और बालक वर दोनों मर गये” इस प्रकार दयाचित्त पश्चाताप करते हुए अन्य राजा लोग भी अपने अपने नगर को चले गये। . दूसरे दिन एकान्त में नदी के तीर पर सुन्दर वस्त्राभरण भेजकर कुमार और कन्या को अलंकृत करके अनेक प्रकार के वाद्यों से दिशाओं को गुंजाता हुआ, परिवार सहित राजा ने वहां आकर पट्ट हस्ती पर उन दोनों को बैठाकर छत्र और चामर से विभूषित करके दीनों को यथेच्छ दान से ऋण रहित करते हुए प्रसन्न चित्त से पुर में प्रवेश कराया। ___ तदनन्तर राजसभा में अपनी गोदी में उस कुमार को विठाकर सभाषदों को सुनाता हुआ नृप उससे पूछने लगाहे वत्स ! अग्नि में प्रवेश करके भी तुम कैसे जीवित रहे और तुमको यह दिव्य अलंकार आदि कैसे प्राप्त हुए ? तब कुमार कहने लगा कि हे राजन् ! शील और सत्व वाले प्राणी को दाहात्मा भी अग्नि कभी नहीं जला सकती, मेरे असीम सत्व और अतीव निर्मल शील को देखकर स्त्री सहित इन्द्र देवता , प्रसन्न हुए। तदनन्तर ज्वालाओं से भयंकर उस अग्नि में से . हमको. निकाल कर देवताओं द्वारा स्वर्गलोक को पहंचाया, .. इससे उनकी गुणी वत्सलता सिद्ध होती है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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