________________ * द्वितीय पच्छेिद * नामक राजा का शत्रुओं को तपाने वाला पुत्र है। इस प्रसिद्ध सौभाग्यशाली को वरण करके अपने जीवन को सफल करो। उस समय कामदेव के समान उस राजकुमार को देखकर शृंगारसुन्दरी मेघ को देखकर जिस तरह मयूरी प्रसन्न होती है उसी तरह विकसित नेत्र वाली हृदय में प्रसन्न हुई। अन्य राजाओं के पास भ्रमण करने से अत्यन्त थकावट को प्राप्त हुई उसकी दृष्टि सर्वगुणसम्पन्न उस कुमार में विश्राम को प्राप्त हुई। सब राजाओं के देखते 2 पूर्वभव के स्नेह से उस श्रृंगारसुन्दरी ने कुमार रत्नपाल के गले में वरमाला डाल दी। " उस समय अन्य राजाओं ने विचारा कि इतने कुलशील आदि से शोभायमान राजाओं के रहते अगर इसने विवाह कर लिया तो हमारे लिए दूध पिलाने वाली माता का खेल होगा और हमारा पानी उतर जायगा। ऐसा विचार कर सब राजा लोग एकत्रित हो गये, क्योंकि समान व्यसन में ही मित्रता होती है। वीरसेन राजा उन राजाओं को विकारयुक्त देखकर अपनी सेना के साथ जामाता की रक्षा के लिए सावधान स्थिर रहा। उसी समय निर्विचार हृदय वाले राजा लोग जिनमें मात्सर्य उमड़ रहा था और जो अपनी बुद्धि गंवा बैठे थे, विचारशाली वीरसेन नरेश को चारों तरफ से घेर कर कहने लगे- "हे राजन् ! गुणरूपी रत्नों की P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun, Gun Aaradhak Trust