________________ 12 ] रत्नपाल नप चरित्र * (72) कला का विज्ञानशाली वह कुमार कामक्रीड़ा के वन सदृश युवतियों को प्रीति देने वाले यौवन को प्राप्त हुआ। एक बार वीरसेन राजा की शृंगारसुन्दरी नामक कन्या के स्वयंवरमण्डप में रूप सौभाग्यशाली वह कुमार दूत द्वारा बुलाये जाने पर पिता की आज्ञा लेकर हसपुर गया। उस स्वयम्बरमण्डप में अन्य भी हजारों प्रतापशाली उत्साही राजा लोग अपनी सेना से युक्त दूत द्वारा बुलाये हुए आये थे। . शुभ दिन में अलङ्कारों से सजे हुए परिषदा के साथ बड़ी समृद्धि से वे समस्त राजा लोग आकर ऊंचे 2 सजे हुए मंचों पर बैठ गये। उस समय उस स्वयम्बरमण्डप में अद्भुत शृंगार की हुई, चौसठ (64) कलाओं में निपुण, सर्वाङ्ग में शुभ लक्षणों से युक्त हाथ में स्वयम्बर माला ली हुई, सखियों से घिरी हुई मूर्तिमतो, तीनों लोकों को जीतने वाली कामदेव की शक्तिस्वरूप शृंगारसुन्दरी आई। तदनंतर चतुर वक्ता प्रतिहारी ने उसके आगे आकर नाम और वंश के वर्णन के साथ समस्त राजाओं का परिचयपूर्वक वर्णन करना शुरू कियाः. हे सुभ्र ! ये पराक्रमी काशी के राजा शूरसेन हैं जो गंगापुर में हंस की तरह स्वच्छन्द खेलता है, सुना जाता है P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust