________________ * प्रथम पच्छेिद के शुद्ध होता है। इसका अन्वय उदाहरण यह है कि ब्राह्मणहत्या, स्त्रीहत्या, बालहत्या, गोहत्या आदि पापों से नरक' में जाने वाले दृढ़ प्रहारी भी मेरे तप द्वाग मोक्ष को चले गये। श्रेणिक जिसके साथ अनन्तानुबन्धि 'क्रोध, मान, माया, लोभ, सम्यक्त्व मोहनीय. मिश्र मोहनीय, मिथ्यात्व मोहनीय' क्षीण हो गये थे, वह भगवान की आराधना करता हुआ भी मरे 'तप' से विमुत्र होने के कारण नरक में पहुंचा। अन्वय और व्यतिरेक से 'अर्थात् मेरी सेवा करने से मुक्ति, न करने से मुक्ति नहीं। कई बार परीक्षा करने पर भी विद्वान् लोग मुझे दान, शीलादि के माहात्म्य से कम महत्व क्यों देते हैं ? - उस समय भाव दानादि को घमण्डपूर्वक कहने लगामेरे से ही महिमा पाकर मेरे ही सामने गरजते हुए तुमको लज्जा नहीं आती। जैसे जीव के बिना शरीर, पुण्य के / बिना फल, जल के बिना तालाच शोभा नहीं पाते, उसी प्रकार तुम 'दानादि भी मेरे विना शोभा नहीं पा सकते। शास्त्र का प्रमाण सुनो-बहुत धन का दान; संपूर्ण जिन वचनों का अभ्यास किया हुआ चण्ड क्रियाकाण्ड, कई बार पृथ्वी पर सोये, तीव्रतर तपस्या की, चरण का P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust