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गजश्रेष्ठी ने अवसर प्राप्तकर राजा से विज्ञप्ति करने लगा-राजन्! वाहन शीघ्र ही आ जायेगा। यहाँ देव उद्यान में देवाधिदेव प्रथम तीर्थंकर का मंदिर है। आप वहाँ पधारकर देवपूजा आदि पुण्य करें। और चार ज्ञान के धारक श्री अमिततेज गुरु यहाँ पधारे हुए हैं, उन्हें वंदनकर अपने जन्म को सफल करें। इष्ट वस्तु थी और वही वैद्य ने खाने को कहा। परलोक के मुसाफिरों के लिए यह भी एक हितकारी भोजन है। इस प्रकार मानता हुआ राजा जिनमंदिर गया और विधिवत् भगवान् की पूजा की। गुरु को नमस्कारकर, कृपा से कोमल बने राजा ने उनकी इस प्रकार की देशना सुनी-दुःख रूपी तरंगों से यह संसार समुद्र अपार है। उसमें जहाज के समान, जिनेश्वर द्वारा प्ररूपित यह धर्म शोभ रहा है। यह धर्म क्रोधादि शत्रुओं को जीतने से ही आराधा जा सकता है, क्योंकि क्रोधांध व्यक्ति कार्य-अकार्य, हित-अहित को नहीं जान सकता है। क्रोध से उन्मत्त बना प्राणी, जानते हुए भी बार-बार वही आचरण करता है, जिससे इहलोक और परलोक में अत्यन्त दुःख के समूहों को प्राप्त करता है।
राजन्! क्रोध के वश से तूने भी पभ राजा के समान खुद का अनर्थ किया है। यह पभ राजा कौन है? इस प्रकार राजा के पूछने पर सूरि भगवंत ने कहा
प्राचीन समय में पभपुर नामक नगर था। वहाँ पर पभ राजा राज्य करता था। एकदिन राजा राज्य की परीपाटी करने निकला। तब अपने भवन के ऊपर सखियों के साथ क्रीडा कर रही वरुण श्रेष्ठी की पुत्री कमला को देखकर, विस्तृत अंतःपुर वाला होते हुए भी राजा उस पर मोहित हुआ। कहा भी गया है कि - लोभी पुरुष धन से, कामुक स्त्रियों से, राजा पृथ्वी से तथा विद्वान सुभाषितों से। जगत् में इन्होंने (लोभी, कामुक, राजा, विद्वान) कभी तृप्ति प्राप्त की है? हर्ष की प्रकर्षता से कन्या की माँगकर, राजाने बहुत आडंबरपूर्वक उसके साथ विवाह किया। दूसरे ही दिन परचक्र के साथ युद्ध के विचार में उलझा, राजा कमला को भूल गया और उससे वह अपने पिता के घर में ही रहने लगी।
कितने ही काल के बाद, प्रौढ अवस्था को प्राप्त कमला के देखकर - यह युवति कौन है? इस प्रकार राजा ने अपने मंत्री से पूछा। उसने कहा - प्रभु! पहले आपने आदर सहित जिस वरुणश्रेष्ठी की पुत्री के साथ विवाह किया था, वह यह ही आपकी पत्नी है। पभ राजा उस प्रसंग का स्मरणकर सोचने लगा - हा! मैंने इस पत्नी को पीड़ा पहुँचायी है। परंतु पति के परदेश जाने के समान इसने हलके वस्त्र क्यों धारण किये है? अतिदुर्बल क्यों है? तथा मंगल के लिए कंगण क्यों धारण किए है? मंत्री ने कहा - प्रभु! कुलीन स्त्रियों का यह आचार है कि पति के विरह में, वे शील रूपी आभरण से विभूषित होकर श्रृंगार आदि नही करती हैं।