Book Title: Pruthvichandra Gunsagar Charitra
Author(s): Raivatchandravijay
Publisher: Padmashree Marketing

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Page 16
________________ सदाचारी कुलीन स्त्रियाँ कामाग्नि के द्वारा जलाये जाने पर भी वृक्ष के समान सूख जाती है, किंतु शील से भ्रष्ट नही होती है। राजा ने कमला को बुलाने के लिए अपने मंत्री को भेजा। तब उसके माता-पिता ने 'महाप्रसाद है' इस प्रकार कहकर पुत्री को भेज दी। राजा ने अपनी भूल के लिए कमला से क्षमा माँगी। उसने कहा प्राणेश! सर्वत्र सावधान ऐसे आपसे प्रिया की विस्मृति कैसे हो सकती है? परंतु निष्पुण्य स्त्रियों को ही अपने स्वामी के दर्शन नही होते है। पश्चात् राजा उसके कामकला के चातुर्य को देखकर शंकाशील हुआ। और उसे दुःशील मानने लगा। क्या इसे मैं अपने हाथों से मार दूँ? किंतु सज्जनों के लिए स्त्री अवध्य है। ऐसा विचारकर राजा ने मंत्री को बुलाया और कहा - इस पापिनी को गुप्त रीति से छोड़ दो। मंत्री ने एकांत स्थान में उसे स्थापितकर आश्वासन देने लगा। और किसी भी प्रकार से राजा को अपनी भूल समझाने के लिए प्रयत्न करने लगा। एक दिन राजा को नमस्कारकर मंत्रीश्वर विविध कथाएँ कहने लगा। तब विष्णुकंठ ने कहा - सदस्यों! यहाँ पर एक आश्चर्यकारी घटना घटित हुई है। सभ्यों के द्वारा पूछने पर, उसने इस प्रकार कथा प्रारंभ की - इस नगर में गुणों से श्रेष्ठ तथा व्यापारियों में अग्रगणनीय ऐसा धन्य नामक श्रेष्ठी हुआ हैं। उसकी श्री नामक पत्नी थी! उन दोनों को चार पुत्र थे - धन, धनद, धर्म और सोम। पिता ने यौवन - अवस्था में आने के बाद उन चारों का विवाह किया। बूढापे में धन्य बीमारी से ग्रसित हुआ। वैद्यों से रोग को असाध्य जानकर उसने अपने सकल स्वजन को बुलाया और प्रत्येक से क्षमा माँगी। तब स्वजनोंने कहा - श्रेष्ठी! आपका धन्य नाम यथार्थ है। आपने अपनी भुजाओं से धनार्जन किया तथा स्वजनों का पोषण किया है। सातक्षेत्रों में भी बहुत धन बोया है। किंतु माता-पिता के मर जाने के बाद, पुत्र परस्पर विवाद करने लग जातें हैं। इसलिए आप हमारी साक्षी में पुत्रों को समभाग में धन विभाजीतकर दें। जिससे इनके बीच झगडा न हो तथा आपका यश भी बढ जायगा। तब धन्य ने कहा - पुत्रों! तुम्हें परस्पर प्रीतिपूर्वक रहना चाहिए। अथवा यदि प्रीति से निर्वाह न हो, तो चारों कमरों की दिशाओं में चार कलश है। तुम यथाक्रम से ग्रहण कर लेना। इस प्रकार कहकर श्रेष्ठी स्वर्गवास हो गये। कितने ही काल तक पुत्र परस्पर सुखपूर्वक रहें, किंतु स्त्रियों का हृदय परस्पर अलग - अलग होने लगा। तब उन्होंने पिता के द्वारा निर्देश किए गये कलशों को निकाला। धन के कलश में धूल, धनद के कलश में अस्थि, धर्म के कलश में वहि और सोम के कलश में स्वर्णमुद्राएँ निकली। तीनों भाई भी वज्रपात के समान भूमि पर गिर पडें और दुःखित होने लगें। स्वजनोंने सोम से कहा -

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