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देखकर, कापालिक ने पूछा - भद्रे! तुम इस स्थान पर अकेली क्यों आयी हो? तुम क्यों रो रही हो?
स्त्री रूपधारी कुमार ने कहा - यात्रा करने के लिए, मैंने पति के साथ प्रयाण किया था। यहाँ पर सो रही मुझे छोडकर, वे कही पर चले गये है और अपनी इस तलवार को भी भूल गये हैं। कापालिक ने कहा - सुंदरी! भाग्य ने उस रंक को ठग लिया है। पुनः आप सदृश स्त्रियों की अनाथता कहीं पर नहीं हो सकती है। कुमार स्त्री ने कहा - भगवन्! पति के विरह में क्षणमात्र भी जीवित रहना, यह कुलीन स्त्री के लिए योग्य नही है। इसलिए भगवन्! आप मुझे कोई तीर्थस्थान बताइए, जहाँ पर मैं अपना जीवन व्यतीत कर सकूँ। तब कापालिक ने कहा - यहाँ पर एक तीर्थ है। उस तीर्थ में तीन रात रहने के बाद तुम अपने पति से मिल सकोगी। इसलिए भद्रे! निरर्थक मरण से क्या लाभ होगा? तुम तीर्थ की उपासना करो। इस प्रकार बातचित करते हुए वे दोनों देवकुल के पीछे स्थित किसी स्थान पर गये। वहाँ पर कापालिक ने अपने पैर से पृथ्वीतल को मारा। इस संकेत को पाकर, एक नागकन्या सदृश कन्या ने गप्तद्वार का उद्घाटन किया। पश्चात् दोनों ने अंदर प्रवेश किया। तुम दोनों देवपूजा की तैयारी करो, मैं फूल लेकर आता हूँ। इस प्रकार कहकर कापालिक बाहर निकल गया। कुमार वहीं पर रुक गया।
तब पहेली कन्या ने कुमार-स्त्री से कहा - सखी! मेरे समान ही इस पापी ने तुझे भी कैद कर दिया है। कुमार-स्त्री ने पूछा - सखी! तुम मुझे बताओ कि यह कौन है? और कहाँ गया है? तुम कौन हो? और इस स्थान पर क्यों रह रही हो? कन्या रोती हुई उससे कहने लगी - कापालिक वेषधारी यह दंडपाल नामक चोर है। संपूर्ण दिवस स्वेच्छा से घूमता है तथा रात्रि के समय स्त्री आदि का अपहरण कर, इस स्थान पर ले आता है। हम दोनों को मिलाकर इसने एक सो एक कन्याओं का संचय किया है। मैं सुभद्रा नामक पांडुपुर में निवास कर रहे श्रेष्ठी की पुत्री हूँ। इसी कापालिक ने मेरा अपहरण किया था। श्रीबल-शतबल के राज्य में रहती हुई भी, परवश के कारण अब इस स्थान में रह रही हूँ। क्या करूँ? कुमार-स्त्री ने पूछा - सखी! इसे ऐसा सामर्थ्य कहाँ से प्राप्त हुआ है? सुभद्रा ने कहा - यह कापालिक तीनों संध्याएँ यहाँ पर स्थित खड्गरत्न की पूजा करता है। खड्गरत्न के साथ रहते यह कापालिक भय रहित, स्वेच्छापूर्वक सूर्य के समान संपूर्ण विश्व में भ्रमण कर सकता है। उसके विरह में यह नित्य कायर के समान दिखायी देता है। वह तलवार दिखाओ इस प्रकार कुमार के कहने पर, सुभद्रा ने भी कापालिक की तलवार दिखायी। कुमार ने उस खड्गरत्न को ग्रहण कर ली तथा उसके स्थान पर खुद की तलवार रखी।
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