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गया। यह देखकर ललितसुंदरी की दासी विदग्धा ने पूछा - सुंदर कमलिनियों पर भी हंस दृष्टि नही डाल रहा है, हम इसका कारण नही जानतें है ? ललितसुंदरी ने कहा - सखि ! जडता से युक्त कमलिनियों की वैसी योग्यता नही है, जिससे चतुर हंस रागी हो। यह देखकर विष्णु नामक बटुक थोडा हंसा और कहने लगा स्वामी! आपका समस्त परिवार विरक्त दिखायी देता है। इसलिए इनके मन की शांति का उपाय करें। यह सुनकर कुमार ने कहा - बटुक ! संसार ही वैराग्य का कारण है, जिससे केशव बटुक के समान प्राणी, संसार में कदर्थना प्राप्त करतें हैं । विष्णु ने पूछा - कुमार ! यह केशव कौन है? तब कुमार ने इस प्रकार कथानक प्रारंभ की
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प्राचीन समय में, मथुरा नगरी में, दुःखी ऐसा केशव नामक बटुक रहता था। उसकी कुटिल, कद्रूपी और कलहकारी कपिला नामक पत्नी थी । कितने ही काल बीतने के बाद गर्भवती बनी। तब उसने पति से कहा - घी, गुड आदि योग्य सामग्री के लिए धन ले आओ। केशव ने कहा- मैं धर्माजन करना नही जानता हूँ, इसलिए तुम ही कोई उपाय बताओ । कपिला ने कहा- स्वर्णभूमि में जाकर, स्वर्ण ग्रहणकर शीघ्र ले आना । वह भी उसके वचन से प्रेरित होकर स्वर्णभूमि पर गया। स्वर्ण लेकर वापिस लौटने लगा । इसीबीच किसी ऐन्द्रजालिक ने देखकर, उससे पूछा। इस मूर्ख बटुक ने भी उसके आगे समस्त वृत्तांत कह सुनाया। उस धूर्त्त इन्द्रजालिक ने विद्या के प्रयोग से युवा ब्राह्मण कन्या और उसके माता-पिता दिखाएँ। कन्या पर अनुरागी बनकर, केशव ने माता-पिता से कन्या की याचना की। उन्होंनें कहा हजार स्वर्ण मुद्राएँ देकर, कन्या ग्रहण करो, अन्यथा नही । केशव ने स्वर्ण मुद्राएँ देकर, कन्या के साथ विवाह किया। पश्चात् धूर्त्त इन्द्रजालिक ने खान-पान की सामग्री भी दिखायी । यह देखकर केशव अत्यंत खुश हुआ। धूर्त्त स्वर्ण लेकर और अपनी संपूर्ण लीला का संहरणकर वहाँ से भाग गया । कन्या को नही देखकर, केशव दुःखित हुआ और उसे चारों ओर ढूँढने लगा। उसे नही प्राप्तकर, केशव खेदित होते हुए विदेशों में पर्यटन करने लगा।
कपिला का स्मरणकर, बटुक सोचने लगा अहो! कष्ट से उपार्जित स्वर्ण को व्यर्थ ही खो दिया है। अब धन रहित होकर, वापिस घर लौटने में लज्जा का अनुभव कर रहा हूँ। मेरे विरह से, प्रिया दुःखी होगी। इसलिए वापिस घर लौट जाता हूँ। अथवा स्वर्णभूमि में जाकर, स्वर्ण ले आऊँ? इस प्रकार विचार करते हुए किसी गाँव में पहुँचा। भाग्य से किसी ने देह मिश्रित अन्न का भोजन कराया। पश्चात् वटवृक्ष के नीचे सो गया। तब केशव ने स्वप्न देखा कि - जब मैं अपने घर में खुदाई कर रहा था, तब रत्नों से भरपूर बडा भूमिगृह प्राप्त किया। पश्चात् महोत्सव मनाया और सभी स्वजनों को भोजन के लिए आमंत्रित किया। नागरिक
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