Book Title: Pruthvichandra Gunsagar Charitra
Author(s): Raivatchandravijay
Publisher: Padmashree Marketing

View full book text
Previous | Next

Page 113
________________ कौन-सी घटना बनी है? इस प्रकार शतबल के पूछने पर उन्होंने कहा - रात के समय यहाँ पर पभरथराजा की पुत्री लक्ष्मणा ने आवास किया था। वह शतबल से विवाह करने का आग्रह कर रही थी। पिता के द्वारा आज्ञा दिए जाने पर, उसने पाडुपुर की ओर प्रस्थान किया। रात्रि के समय, लक्ष्मणा ने यही पर आवास किया था। उससे पहले किरात देश के राजा कुंजर ने लक्ष्मणा की माँग की थी। पभरथ राजा के द्वारा निषध करने पर, कुंजर राजा लक्ष्मणा को प्राप्त करने के लिए निरंतर मौका देखने लगा। लक्ष्मणा को यहाँ पर रुकि हुयी जानकर उस दुर्बुद्धि कुंजर ने इस प्रदेश में आकर उसका अपहरण कर लिया है। शतबल को प्राप्त नही करती हुई वह बिचारी मर जाएगी। इस प्रकार की संभावना से आज हम शोकमग्न बनीं हैं। यह सुनकर तत्काल ही शतबल ने सेना लेकर उस शत्रु का पीछा किया। कुंजर को युद्ध में घायल कर, लक्ष्मणा को वापिस प्राप्त कर ली। पांडुपुर में आया और शुभदिन में उसके साथ पाणिग्रहण किया। सभी राजाओं ने लक्ष्मणा का विवाह महोत्सव मनाया। इस प्रकार तुम चारों ने भी मुनिदान से अद्भुत सुख प्राप्त किया है। मुनिभगवंत से यह चरित्र सुनकर, उन चारों को जातिस्मरणज्ञान हुआ और अपने पूर्वभव को देखा। पश्चात् उन्होंने मुनिराज से पूछा - सुलक्ष्मणा का अपहरण करनेवाले उस विद्याधर का क्या हुआ है? उसके बारे में कहे। मुनिराज ने कहा - वह विद्या से भ्रष्ट हो गया था और सैंकड़ों कष्ट प्राप्त किए। एकदिन मुनि की देशना सुनकर प्रतिबोधित हुआ और दीक्षा ग्रहण की। ध्यानमय अग्नि से आठों प्रकार के कर्म जलाकर निर्मल केवलज्ञान प्राप्त किया और क्रम से निर्वाण भी प्राप्त कर लिया है। इस प्रकार मुनिभगवंत की देशना से श्रीबल राजा संविग्न मनवाला हुआ। शतबल को राज्य सौंपकर, वह दीक्षा ग्रहण करने के लिए खडा हुआ। उतने में ही शतबल ने कहा - तात! मैं भी आपके साथ संयम अंगीकार करनेवाला हूँ। मैंने भी यह निश्चय कर लिया है। शतबल के आग्रह को जानकर, श्रीबल राजा ने राज्यपद पर गिरिसुंदर को तथा युवराजपद पर रत्नसार का अभिषेक किया। महोत्सवपूर्वक श्रीबल-शतबल दोनों भी महामुनि बने। और असिधार सम व्रत का पालन करने लगे। गिरिसुंदर भी राज्यलक्ष्मी का परिपालन करने लगा। एकदिन स्वप्न में उसने खुद को कल्पवृक्ष की शाखा खाते हुए देखा। मंगल वाजिंत्रों के शब्द से, राजा प्रातः जाग गया। स्वप्न के फल को उच्च मानता हुआ उद्यान के जिनालय में आया। अरिहंत भगवंत को नमस्कार किया। बाहर आम्रवृक्ष के नीचे खडे महामुनि को देखकर, पाँच प्रकार के अभिगमों से वंदन कर उनकी धर्मदेशना सुनी। गिरिसुंदर राजा संवेग मनवाला हुआ और रत्नसार से अपनी दीक्षा की बात 108

Loading...

Page Navigation
1 ... 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136