Book Title: Pruthvichandra Gunsagar Charitra
Author(s): Raivatchandravijay
Publisher: Padmashree Marketing

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Page 114
________________ कही। रत्नसार ने भी व्रत ग्रहण की इच्छा प्रकट कर राजा को प्रोत्साहित किया। मंत्रियों की संमति से सुरसुंदर को राज्य सौंपकर जयनंद गुरु के समीप में दोनों ने यथाविधि दीक्षा ग्रहण की। पश्चात् आयुष्य पूर्ण कर दोना नौवें ग्रैवेयक में देव हुए। __इस प्रकार पं. श्रीसत्यराजगणि द्वारा विरचित श्रीपृथ्वीचंद्रमहाराजर्षि चरित्र में गिरिसुंदर-रत्नसार महर्षि का चरित्र रूपी अष्टम भव वर्णन संपूर्ण हुआ। नवम भव बंग देश में ताम्रलिप्ती नामक महानगरी है। वहाँ पर सुमंगल राजा राज्य करता था। उसकी श्रीप्रभा और स्वयंप्रभा नामक पत्नियाँ थी। ग्रैवेयक से गिसिसुंदर देव च्यवकर श्रीप्रभा की कुक्षि में पुत्र के रूप में अवतीर्ण हुआ। तब श्रीप्रभा ने ध्वज को स्वप्न में देखा था। जिस प्रकार पूर्व दिशा सूर्य को जन्म देती है, वैसे ही श्रीप्रभा ने समय पर पुत्र को जन्म दिया। स्वप्न के अनुसार उसका कनकध्वज नाम रखा गया। रत्नसार देव भी ग्रैवेयक से च्यवकर स्वयंप्रभा की कुक्षि में पुत्र के रूप में अवतीर्ण हुआ। राजा ने उसका जयसुंदर नाम रखा। क्रम से वे दोनों बढ़ते हुए, पावन यौवन अवस्था में पदार्पण किया। पूर्व भव के अभ्यास से दोनों परस्पर प्रेमशील थे। वह कला तथा वह विद्या नहीं थी, जिसे दोनों ने शीघ्रतया सीखी न हो। एकदिन वे दोनों राधावेध का अभ्यास कर रहे थे। सुरवेग और सूरवेग नामक दो विद्याधरों ने उन दोनों को अभ्यास करते हुए देखा। कनकध्वज तथा जयसुंदर पर फूलों की वर्षा कर, वे दोनों विद्याधर वहाँ से चले गये। अहो! देवों ने इन दोनों की पूजा की है, ऐसी दोनों की प्रख्याति लोगों में फैल गयी। लोगों से इस बधायी को सुनकर, सुमंगल राजा अत्यंत आनंदित हुआ और विकसित मनवाला होते हुए, खुद को पिताओं में अग्रगणनीय मानने लगा। ___ एकदिन राजसभा में बैठा सुमंगल राजा सुंदर वाजिंत्रों के घोष सुनकर हृदय में आश्चर्यचकित हुआ। इतने में ही सभा में, आकाश मार्ग से दो विद्याधर आएँ। दोनों विद्याधरों ने राजा को नमस्कार कर कहा - देव! जुदी-जुदी माताओं से उत्पन्न सुरवेग तथा सूरवेग नामक दो भाई वैताढ्यपर्वत पर दोनों श्रेणियों के विद्याधर वैभव का परिपालन कर रहें हैं। उन दोनों की सो-सो कन्याएँ हैं। एकदिन आपके दोनों पुत्रों को राधावेध करते देखा था। उनके कलाकौशल से खुश होकर दोनों विद्याधरों ने पुष्पवृष्टि की थी। और अपनी सभा में भी उनके इस गुण की प्रशंसा की थी। आपके कुमारों के गुण सुनकर वे सभी कन्याएँ, अनुरागवाली बनी है। इसलिए आपके कुमारों के साथ इन कन्याओं का विवाह करने के लिए सुरवेग और सूरवेग सभी विद्याधर तथा कन्याओं को साथ लेकर यहाँ पर चले आरहे हैं। आपको सूचना देने के लिए हमें पहले भेजा है। यह सुनकर सुमंगल राजा आनंदित हुआ और दोनों विद्याधर राजाओं के संमुख गया। निवास स्थान, भोजन 109

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