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कनकसुंदरी रखा गया। यौवन अवस्था प्राप्त करने पर भी, कनकसुंदरी विषयसुखों से विमुख ही थी।
समान उम्रवाली सखियों ने कनकसुंदरी को विविध प्रकार से समझाया, किन्तु विषयरस से विमुख बनी वह, पुरुषों का नाम भी सुनना पसंद नहीं करती। यह जानकर राजा चिंतातुर हुआ। मंत्री से उपाय पूछा। बुद्धि के उपयोग से अपने चित्त में सोचकर, मंत्री ने कहा-पूर्वभव में, इस कन्या का किसी पुरुष पर अधिक प्रेम होगा। इसलिए वह उसे छोड़कर किसी अन्य पुरुष को नहीं चाहेगी। उस पुरुष को पहचानने के लिए, कन्या को सभी राजपुत्रों के चित्र दिखायें जायें। इस उपाय से उसके पूर्वभव का पति मिल सकता है। कहा भी गया है कि
श्रुतं प्रियस्य नामापि प्रतिरूपमपीक्षितम्। ध्रुवं जन्मान्तरप्रेम प्रकाशयति देहिनाम्॥
प्रिय का नाम सुनने से, उसका चित्र देखने पर भी प्राणियों का जन्मांतर का प्रेम प्रकाशित हो जाता है। यह उपाय योग्य है, ऐसा सोचकर राजा ने विविध चित्रकार पुरुषों को बुलाया। और वे अपने साथ कन्या का चित्र लेकर विविध राज्यों में गये। चित्रकारों ने भी अनेक राजपुत्रों के चित्र ग्रहणकर वापिस अपनी नगरी आये और राजा की आज्ञा होने पर, वे चित्र दिखाये। राजा ने उन चित्रों को कन्या के पास भेजे। अन्यकार्य में विघ्न डालनेवाले, इन चित्रों को देखने से क्या लाभ होगा? इस प्रकार कहकर, कनकसुंदरी ने असूया सहित उन चित्रों को त्याग दिये। इसी बीच मथुरा से भी चित्रकार पुरुष वापिस लौटे। उन्होंने देवसिंहकुमार का अद्भुत रूप दिखाया। कुमार के रूप को देखकर राजा ने कहा-यदि इस कुमार के रूप पर भी कन्या का मन रागी नहीं होता है, तो उससे बढ़कर कोई नीरागशिरोमणि नहीं होगा। यह कन्या मूर्ख अथवा पशु कही जायेगी। इस प्रकार कहकर, राजा ने चित्रपट को कन्या के पास भेजा। चित्रपट के दर्शन से कन्या अत्यन्त आनंदित बनी। वह अपने मस्तक को हिलाती हुई सखियों से कहने लगी-अहो! विज्ञान से कुशल इस रूप को किसने चित्रित किया है? अथवा सखि! इस जगत् में क्या कोई पुरुष ऐसा रूपशाली भी है, जिसका चित्र भी ऐसा अद्वितीय है। सखियों ने कहा-स्वामिनी! यह मेघराजा का पुत्र देवसिंह है। वर आपके उचित है। यदि भाग्य उसके साथ मिलन करा दे, तो सुंदर होगा।
इसी बीच राजा ने, दासी से वह चित्र मंगाया। कुमारी को वर पसंद है, ऐसा जानकर, राजा ने शीघ्र ही अपने मंत्रियों को मथुरा भेजा। उन्होंने मेघराजा समक्ष, कन्या के लिए देवसिंह की याचना की। मेघराजा के आज्ञा देने पर, कुमार सुंदर सामग्री से युक्त, कन्या से पाणिग्रहण करने के लिए प्रयाण किया। महोत्सवपूर्वक कन्या से विवाहकर, कुमार कितने ही दिन तक वहाँ सुखपूर्वक रहा।
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