Book Title: Pruthvichandra Gunsagar Charitra
Author(s): Raivatchandravijay
Publisher: Padmashree Marketing

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Page 45
________________ उसका पुरंदरयशा नाम रखा। क्रम से बढ़ती हुयी वह यौवन अवस्था में आयी। किंतु वह कानों से श्रृंगाररस कथाओं का श्रवण नही करती थी । भोगिलोगों का वस्त्र परिधान, श्रृंगार आदि को नही देखती थी। भोग स्त्रियों की गोष्ठि में नही बैठती थी। सखियों के साथ कामरस का संवाद नही करती थी। तारुण्य अवस्था में उसे पुरुषों से विमुख देकर माता-पिता चिंतित बने । तब राजा ने मतिसागर आदि मंत्रियों को बुलाकर पूछा तारुण्य अवस्था में भी यह कन्या पति की इच्छुक नही है। उसके विवाह का क्या उपाय है? मतिसागर मंत्रीने कहा स्वामी! यह कामरोग निःसत्त्वशाली पापियों के हृदय में उछलता है, किंतु महात्माओं के हृदय में नही। आपकी पुत्री पूर्वभव के पति बिना अन्य किसी भी पुरुष पर रागिणी नही होगी। इसलिए राजपुत्रों के चित्र लाकर दिखाएँ । पश्चात् कन्या के मनोभाव जानकर विवाह निश्चित करे । - यह राजा ने अनेक राजकुलों में अपने गुप्तचर भेजें। उन्होंनें भी राजकुमारों के चित्र लाकर दिखाएँ, किंतु पुरंदरयशा को कोई पसंद नही आया । एकदिन उसने निधिकुंडल के चित्र को देखा। चित्र देखते ही उसकी आँखें स्थिर हुयी, रोमांच होने लगा और दीर्घ निःश्वास छोड़ने लगी । पुरंदरयशा ने सखी से पूछा किसका रूप है, जिसे देखकर मुझे हर्ष उत्पन्न हो रहा है? सखियोंने जाकर यह बात राजा से कही। राजा के द्वारा अपने आदमियों से पूछने पर उन्होनें कहा - यह श्रीमंदरपुर के नरशेखर राजा का निधिकुंडल नामक पुत्र है। यह गुणवान् तथा सदाचारी है। किंतु इसमें एक दूषण यह है कि स्वयंवर के लिए आयी कन्याओं को आँख उठाकर भी नही देखता है। यह सुनकर रत्नचूडराजा ने पुरंदरयशा का रूप चित्रपट पर चित्रित कराकर, निधिकुंडल की परीक्षा करने के लिए निपुण पुरुषों के हाथ में सोंपकर भेजा। वे भी प्रयाण करते हुए संध्या के समय श्रीमंदपुर पहुँचे और नरशेखर राजा से मिले। - कुलदेवी ने स्वप्न में निधिकुंडलकुमार को पुरंदरयशा का रूप दिखाया। पूर्वभव के अभ्यास से वह अत्यंत पसंद आयी । कुमार ने उसे बुलाया। तब लज्जा से सिर झुकाकर मौन रही । कुमार ने प्रेम से उसका हाथ ग्रहण किया। इसी बीच चारण लोगों की स्तुति से तथा वाजिंत्रों के घोष से कुमार जाग गया। पुरंदरयशा को नही देखकर, कुमार दुःखित होने लगा। कुमार को चिंतातुर देखकर, मित्रों ने कारण पूछा। कुमार ने अपने स्वप्न के बारे में कहा। उसी समय कुमार की आज्ञा लेकर, रत्नचूड राजा के पुरुषों ने अंदर प्रवेश किया और पुरंदरयशा का चित्रपट्ट दिखाया। विकसित नेत्रों से देखकर कुमार ने कहा वह यह ही प्राण वल्लभा है। मित्रों ने कहा - नारी ऐसी नही हो सकती है, स्वप्न में देवी ने ही दर्शन दिएँ है। कुमार के द्वारा चित्रकारकों से पूछने पर उन्होनें कहा विधाता ने देवी का रूप 40

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