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हुआ। तथाविध गुणधर के उस वृत्तांत को सुनकर, गुणाकर वैराग्य प्राप्तकर विशेष से परिग्रह परिमाण अणुव्रत का पालन करने लगा। अंत में आयुष्य पूर्णकर स्वर्ग में गया। अधम ऐसा गुणधर नरक आदि दुर्गतियों में लाखों दुःखों का स्थान बना।
इस प्रकार पंचम अणुव्रत के विषय में गुणाकर-गुणधर की कथा संपूर्ण
__परिग्रह की विरति से गुण तथा अविरति से दोषों के बारे में अच्छी प्रकार से सुनकर मेरी पत्नियों ने इच्छा परिमाण का नियम ग्रहण किया। और मैं भी हा! व्यर्थ ही इन महाव्रतधारी मुनि के बारे में विपरीत विचार किया, इस प्रकार पश्चात्ताप करते हुए मुनि के पैरों में गिरा। खुद के पाप आशय को उनके सामने निवेदनकर क्षमा माँगी और उन मुनिपुंगव से विज्ञप्ति की - भगवन्! यदि हास्य वचन से विष्ट ने भयंकर दुःख प्राप्त किये थे, तब द्वेष से दूषित मेरी क्या स्थिति होगी? शांतिपूर्वक मुनि ने कहा - अहो! मन से भी महामुनियों पर द्वेष का चिंतन करना महापाप है। चारित्र बिना चतुर पुरुष भी इस पाप का छेदन करने में समर्थ नही हो सकते हैं। क्योंकि अंधकार नष्ट करने में सूर्य की किरणें ही समर्थ है। संसार की असारता के बारे में सम्यग् प्रकार से विचार करो और अपने मन में कटु विपाकवालें काम-भोगों का चिंतन करो। पश्चात् अशाश्वत और असार ऐसे संसार के सुख को छोडकर शाश्वत और एकांत सुख का कारण ऐसे संयम का आश्रय लो।
इस प्रकार अमृत के समान मधुरता में प्रधान ऐसी मुनिराज की वाणी सुनकर, क्षणमात्र में ही मोह रूपी विष नष्ट हो गया और ज्ञाननेत्र जाग गयी। पश्चात् मुनिराज ने मनोहर वाणी से मेरी पत्नियों को प्रतिबोधित किया। मैंने पत्नियों के साथ धर्मदेव गुरु के पास दीक्षा ग्रहण की। उन गुरु के पादकमल समीप में, मैं सतत तपस्या करने लगा। कालक्रम से उन्होंने मुझे यह गुणसंपदा प्राप्त करवायी है। ज्ञान महिमा से अद्भुत उन गुरु को नमस्कार हो, जिन्होंने पाषण की उपमावाले मुझे भी लोक में वंदनीय बनाया है। इस प्रकार सूरिभगवंत के अद्भूत चरित्र को सुनकर सिंहसेन राजा हृदय में आश्चर्यचकित हुआ। ऐसे मुनिराज के दर्शन होने से वह खुद को पुण्यात्माओं में श्रेष्ठ मानने लगा। पश्चात् विविध वचनों से मुनिपुंगव की स्तुति करने लगा। पुत्र को राज्य सौंपकर, भाव रूपी पानी से मनोमल दूर हो जाने से निष्कलंक बना राजा, तृण के समान संपूर्ण राजलक्ष्मी को छोडकर शुभ दिन में मोक्षसुख का मूल ऐसे निर्मल चारित्ररत्न को ग्रहण किया।
पूर्णचंद्र राजा भी सम्यक्त्व, अणुव्रत की प्राप्ति से आनंदित हुआ। फैलते
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