Book Title: Pruthvichandra Gunsagar Charitra
Author(s): Raivatchandravijay
Publisher: Padmashree Marketing

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Page 102
________________ - लाख स्वर्ण मुद्राएँ। तब लोगों ने कहा - अहो! बिल्लीमात्र का क्या इतना मूल्य हो सकता है? हरिवेग ने कहा - गुणों के कारण पत्थर, लकडे भी अमूल्य बन जातें हैं। अथवा क्या मणि, चंदन आदि महामूल्यवान् नही होतें है? इस बिल्ली में कौन-से गुण है? इस प्रकार लोगों के द्वारा पूछे जाने पर, विद्याधर ने कहा - हमें राजमहल जाना चाहिए। वहाँ पर इस बिल्ली के गुण-अवगुण का निश्चय होगा। इस प्रकार वार्तालाप करते हुए, वृद्ध ब्राह्मणों के साथ बिल्ली को आगेकर राजसभा में पहुँचा। वहाँ पर, पूर्वभव के अभ्यास से पभोत्तरकुमार ने हरिवेग को स्नेह की दृष्टि से देखा। तब राजा ने पूछा - बिल्ली कहाँ से प्राप्त की है? हरिवेग ने कहा - किसी देव ने यह बिल्ली मुझे दी है। गुणों से श्रेष्ठ होने के कारण, संपूर्ण विश्व में इसका मूल्य नही हो सकता है। इसमें कौन-से गुण है? इस प्रकार राजा के द्वारा पूछे जाने पर, हरिवेग ने कहा - राजन्! आप इसके गुण सुनो। कुत्ते, बिल्ली आदि कोई भी इसे जीत नही सकता है। दूसरा गुण यह है कि - जिस स्थान पर यह बिल्ली रात्रि के समय रहती है, उस स्थान को भयभीत बने चूहें बारह योजन पर्यंत छोड़ देते है। हरिवेग ने वृद्ध ब्राह्मणों से कहा - इसके अन्य भी बहुत गुण है। इस बिल्ली का मूल्य नहीं आंका जा सकता है। किंतु दुःख अवस्था से पीडित होने के कारण, मैं इसे बेच रहा हूँ। पश्चात् बिल्ली के एक कान को देखकर, ब्राह्मण हंसने लगे और हरिवेग से कहा - यदि चूहे इस बिल्ली से बारह योजन दूर भाग जाते हैं, तो क्या उन चूहों ने इसका कान जरा-सा खा लिया है? तेरे वचन का प्रमाण पूर्वापर असंगतवाला है। हरिवेग ने ब्राह्मणों से कहा - सदरत्न को इस प्रकार दूषित नही किया जा सकता है। क्योंकि देव आदि में भी आपका यह विरोध घटाया जा सकता है। जो मनुष्य गाय, ब्राह्मण, स्त्री, बालक आदि की हत्या करता है, उसे आप किस प्रकार से संबोधन करेंगें? ब्राह्मणों ने कहा - वह मनुष्य महापापी तथा अदर्शनीय मुखवाला होता है। तब हरिवेग ने कहा - यदि ऐसा है तो, जो अग्नि ब्राह्मण, बालक आदि को जलाता है, उस अग्नि को धर्माकांक्षी लोग देव की बुद्धि से किस लिए पूजा करतें हैं? अथवा क्रोडों देवों के मुख को तृप्त करने के कारण, इस अग्नि में तर्पण किया जाता है। तो फिर उनके अनिष्ट शव आदि को अग्नि स्वयं ही क्यों जलाता है? ब्राह्मणों! आप शौचधर्म के जानकर होते हुए अशुचि कवल करने में तत्पर अग्नि को, देव की बुद्धि से कैसे पूजा कर सकतें हो? यदि आप कहते हो कि पानी विष्णु की मूर्ति है, तो उसी पानी से पैर धोने से तथा अशुचि साफ करने से क्या आपकी वाणी में विरोध प्रकट नहीं होता है? यदि देवों में विरोध है, तो इस श्रेष्ठ बिल्ली में दोषों का चिंतन क्यों करतें हो? तथा अन्य इस कारण पर भी 97

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