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ममता से उत्पन्न दुःख को शांत करो। इस प्रकार कुलपति की वाणी सुनकर, राजा प्रतिबोधित हुआ। राज्य को छोड़कर, वसंत राजा पत्नी सहित कुलपति से दीक्षा का आग्रह करने लगा। गर्भ के कारण, गुणमाला को निषेध.करने पर भी, माता-पिता के विरह को सहने में असमर्थ होने से कुलपति की आज्ञा लेकर उसने भी व्रत ग्रहण किया। कालक्रम से गुणमाला ने सुखपूर्वक पुत्री को जन्म दिया। सूतिकारोग के कारण गुणमाला ने उसी वन में आयुष्य पूर्ण कर दिया। पुत्री का वनमाला नाम रखा गया। वनमाला की नानी पुष्पमाला ने कितने ही काल पर्यंत, इस कन्या का पालन-पोषण किया। पश्चात् पुष्पमाला का भी स्वर्गवास हो गया। कर्मदोष से, इस पुत्री को छोड़ने का सामर्थ्य नहीं होने से, मैं वसंतराजमुनि मोह के कारण इसका पालन कर रहा हूँ। अब गुरु के आदेश से, मैंने इस वनमाला को आपके सामने प्रस्तुत की है। सज्जन ऐसे आप मेरी प्रार्थना का भंग न करे। वैसे ही होगा, इस प्रकार कुमार के द्वारा स्वीकार करने पर, आनंदित तापस ने वनमाला आदि से सजी हुई उस वनमाला कन्या को पभोत्तर कुमार को अर्पित की। वेतालिनी विद्या तथा पत्नी वनमाला को साथ लेकर, कुमार ने मथुरा की ओर प्रयाण किया।
समय पर सभी राजाएँ मथुरा नगरी में पहुँच गये। चंद्रध्वज राजा की शशिलेखा - सूरलेखा कन्या भी स्वयंवरमंडप में पहुँच गयी। भ्रमरी के समान बार-बार, इधर-उधर घूम रही उन दोनों की दृष्टि, पभोत्तरकुमार रूपी बगीचे के दिखाई देने पर स्थिर हो गयी। दोनों कन्याओं ने कुमार के गले में वरमाला डाली। जय-जयकार शब्द व्याप्त हुआ और वाजिंत्रों के घोष से आकाश पूरा गया। दूसरे राजा, कुमार के इस गौरव को सहन न कर सकें और अपनी सेनाओं के द्वारा उसे घेर लिया। तब पभोत्तर ने अद्भुत ऐसी वेतालिनी विद्या का स्मरण किया। जिस प्रकार हवा, पराल (अनाज रहित छोड़) को बिखेर देती है, वैसे ही कुमार ने शत्रुसेनाओं को भगा दिया। शीघ्र ही कुमार ने अपने भुजाओं के पराक्रम से उन सब शक्तिशाली राजाओं को जीत लिया। कुमार का पराक्रम देखकर सब राजा नतमस्तक हो गये। पश्चात् दोनों कन्याओं ने महोत्सवपूर्वक, कुमार के साथ विवाह किया। कितने ही समय तक वहाँ रहकर, पभोत्तर कुमार वापिस अपने नगर में लौट आया। पिता ने अक्षय पुण्यवाले कुमार को युवराज पद पर स्थापित किया। पभोत्तरकुमार शशि-सूरलेखा के साथ सुखों का उपभोग करते हुए समय बीताने लगा।
इस ओर, वैताढ्यपर्वत के गगनवल्लभ नगर में, प्रख्यात विद्याधर राजा कनककेतु राज्य करता था। उसे कनकवती तथा दूसरी रत्नवती पत्नी थी। उन दोनों पत्नियों से, कनकावली तथा रत्नावली पुत्रियाँ हुयी। पुत्री के जन्म-महोत्सव
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